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________________ ६८८ आत्मतत्व-विचार रहा है । पर, मोह आपको छोड़ता नहीं, यही आश्चर्य की बात है। शास्त्रकार मोह की उपमा अंधकार से देते हैं-यह बिलकुल यथार्थ है। मनुष्य चाहे ज्ञानी हो, पर मोह का आवरण आ जाये तो वह सारा ज्ञान दब जाता है। ऐसी स्थिति में यदि वह अकृत्य कर दे तो इसमें आश्चर्य क्या है ? __ मोह कट्टर शत्रु है मोह जीव का कट्टर शत्रु है । वह उसकी बड़ी दुर्दशा करता है ! । शास्त्रकारो ने मोह को अधकार की उपमा दी है। आदमी कितना ही जानी हो, मगर मोह का उदय आने पर उसकी सारी चतुराई दफन हो जाती है। उस हालत में वह कुचाली हो जाये इसमें आश्चर्य क्या? माता पुत्र की पालक होती है। मगर, चूलनी रानी ने अपने पुत्र ब्रह्मदत्त को जिन्दा जला देने का षड्यन्त्र रचा ! क्यों ? क्योकि, वह मोह के आवेश मे दीर्घ राजा पर आसक्त होकर अपना मान भूल गयी थी। पिता पुत्र का रक्षक होता है। फिर भी कृष्णराज ने अपने तमाम पुत्रो का अंगभंग करा दिया; कारण कि राज्य का मोह उस पर सवार था। सूरिकता ने अपने पति प्रदेशी राजा को विष दे दिया ! कोणिक ने अपने पिता श्रेणिक राजा को लोहे के पिंजड़े में ढूंस दिया। यह सब मोह की ही विडम्बना है ! __मोह के कारण आत्मा परपदार्थ को अपना मानता है और मेरी माता, मेरा पिता, मेरी पत्नी, मेरे पुत्र, मेरी पुत्री, मेरा कुटुम्ब, मेरे स्वजन, मेरी मिल्कियत, मेरा पैसा, सर्वत्र 'मेरा-मेरा' करता है। परन्तु, वास्तव में इनमें से कुछ भी उसका नहीं है। अगर उसका हो तो उसके साथ रहे; परन्तु यह सत्र तो यहीं पड़ा रहता है और आत्मा अकेला ही परलोक जाता है।
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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