SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 766
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६६८ ( १ ) जीव है । ( २ ) वह नित्य है | आत्मतत्व-विचार (३) वह शुभाशुभ कर्म का कर्ता है । ( ४ ) वह शुभाशुभ कर्मफल का भोक्ता है । ( ५ ) वह सत्र कर्मों का क्षय करके मोक्ष प्राप्त कर सकता है । (६) मोक्ष का उपाय सुधर्म है । आत्मा और कर्म विषयक व्याख्यानमाला मे इन ६ सिद्धान्तों के विषय में काफी विवेचन किया है । यहाँ उसकी पुनरुक्ति नहीं करते । इस प्रकार सम्यक्त्व के सड़सठ भेदों का वर्णन यहाँ पूरा होता है । उन्हें भलीभाँति समझकर चलनेवाला शुद्ध समृकिती वन जा सकता है और इस दुःखपूर्ण ससार का पार पाया जा सकता है । + विशेष अवसर पर कहा जायेगा ।
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy