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________________ ६६० आत्मतत्व-विचार ने लकड़ी के उस खम्भे को मॅगवाया । देखा कि, उस पर बिल्ली का मुंह बना हुआ है। इस प्रकार बालक के बिल्ली द्वारा मरण पाने की बात भी सच्ची ही थी। इसमे राना उनका भक्त बन गया और निन-शासन की खूब प्रभावना हुई। जो महात्मा विविध प्रकार की तपश्चर्या द्वारा शासन की प्रभावना करे, वह तपस्वी-प्रभावक है जैसे कि श्री विष्णुकुमार मुनि । उनकी कथा हम पहले कह चुके है। जो महात्मा मत्र-तंत्र आदि विद्या का उपयोग शासन की उन्नति के. लिए करें, वे विद्यावान-प्रभावक हैं-जैसे कि श्री आर्यखपुटाचार्य । आज से लगभग दो हनार वर्ष पहले ये महात्मा विद्यमान थे और वे भडोच के निकटवर्ती प्रदेश में विचरते थे। उन्होंने चौड़ी और ब्राह्मणों के आक्रमण के सामने मंत्र-तंत्र की अद्भुत् शक्ति बतायी और जिन-गासन की अच्छी प्रभावना की। जो महात्मा अनन-चूर्ण-लेप आदि सिद्ध योगों द्वारा श्री जिनगासन का गौरव बढ़ावें, वे सिद्ध-प्रभावक है-जैसे कि श्री पाटलिप्त सरि ! वे लेप के प्रयोग से आकाशगमन कर सकते थे तथा मुवर्णसिद्धि आदि प्रयोग जानते थे। उन्होंने इस शक्ति द्वारा शासन की सुन्दर प्रभावना की थी। उनका शिष्य बनकर प्रसिद्ध रसगास्त्री नागार्जुन ने आकाशगमन की शनि प्राप्त की थी। उसने अपने गुरु की स्मृति में श्री शत्रुञ्जय की. तलहटी में पादलिप्तपुरी-नामक नगर बसाया था, जो कि आज पार्लीताना, के नाम से प्रसिद्ध है। ___ जो महात्मा अद्भुत काव्यगक्ति द्वारा सब का हृदय मोह लेते हैं वे कविराज-प्रभावक है । जैसे कि, श्री सिद्धसेन दिवाकर, श्री बापमट्ट सनि, श्री हेमचन्द्राचार्य आदि ।
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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