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________________ सम्यक्त्व ६५७ जो महापुरुष विद्यमान जिनागमो के पारगामी बनकर शासन की प्रभावना करते हैं, वे प्रावनिक-प्रभावक है, जैसे कि, हरिभद्र सूरीश्वर जी महाराज। जो महापुरुप धर्मकथा करने की, दूसरो को धर्म प्राप्त करा देने की अद्भुत् शक्ति रखते हैं, वे धर्मकथी-प्रभावक है, जैसे कि, महर्षि नदिपेण । जिन-गासन में नदिपेण-नाम के तीन महात्मा प्रसिद्ध हैं। एक है मुनियों का अद्भुत वैयावृत्त्य करनेवाले, दूसरे हैं श्री अजितशाति के कर्ता, और तीसरे हैं धर्मकथी । ये धर्मकथी नदिपेण मुनि श्रेणिक राजा के पुत्र ये और उन्होंने श्री महावीर प्रभु की धर्म देगना सुनकर प्रतिबोध प्राप्त किया या। उन्होंने भोगेच्छाओं को दबाने के लिए उग्र तपस्या की थी और उसके दौरान में विशिष्ट लब्धि प्राप्त की थी। कहा है कि---- कर्म खपावे चीकणां, भावमंगल तप जाण । पचास लब्धि उपजे, जय-जय तप गुणखाण ।। एक बार नदिप्रेण मुनि मिक्षार्थ निकले । एक ऊँचा धवल घर देखकर उसमें प्रवेश किया और 'धर्मलाभ' कहकर खड़े हो गये। उस समय घर की मालिकिन बोली-"महाराज! यहाँ धर्मलाभ की नहीं, अर्थलाभ की आवश्यकता है।" ये शब्द सुनते ही मुनिवर को चानक लगा । उन्होने छप्पर में से एक तृण खींचा कि, अशर्फियो की वृष्टि होने लगी। ___यह देखकर वह स्त्री (वेश्या ) कहने लगी- "हे प्रभो ! मूल्य दिया है तो फिर माल लिए बगैर नहीं जा सकते । आप मुझ पर दया करें। अगर आप मेरी उपेक्षा या तिरस्कार करके चले जायेंगे, तो आपको स्त्री-हत्या का पाप लगेगा।" ये वचन सुनकर मुनिश्री की दबी हुई भोगेन्छा जाग्रत हो गयी और ४२
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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