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________________ तीसरा व्याख्यान मात्मा एक महान प्रवासी महानुभावो! श्री उत्तराध्ययन-सूत्र के अल्पसंसारी 'आत्मा के वर्णन' में 'आत्मा' का विषय चल रहा है। उसमें 'आत्मा है' यह बात निश्चित हो गयी और वह देह, इद्रियो, प्राण और मन से भिन्न है, यह भी देख लिया गया। अब आपको यह सत्य दर्शाया जाता है कि 'आत्मा एक महान प्रवासी है ! __प्रवासी प्रवास करता हुआ किसी जगह जाता है। वहाँ किसी धर्मशाला या सराय में कुछ समय ठहरता है और फिर वहाँ से दूसरी जगह चला जाता है। वहाँ भी उसी तरह कुछ समय रहता है और तब वहाँ से तीसरी जगह चला जाता है। इस तरह वह प्रवासी अपना गंतव्य स्थान आने तक प्रवास ही करता रहता है। उसी प्रकार कर्मावृत्त आत्मा एक देह धारण करता है, उसमें अमुक समय तक निवास करता है और फिर उमे छोड़कर दूसरी जगह चला जाता है। वहाँ दूसरी देह धारण करता है और उसमें भी कुछ समय रहकर तीसरी जगह चला जाता है। इस तरह उसका प्रवास---उसका परिभ्रमण–मुक्ति प्राप्त होने तक चलता रहता है। इसलिए हम उसे महान प्रवासी कहते है।। कोई आदमी पैदल चले तो एक दिन में करीब बीस मील का सफर करगा और एक महीने में ६०० मील चलेगा। बारह महीने में ७,२०० मील पूरी करेगा। ५० वर्ष तक चलता रहे, तो ३,६०,००० मील की यात्रा होगी।
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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