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________________ १२० आत्मतत्व-विचार उत्तर--कारण कि, उसका पालन नहीं हो सकता । लड़का परदेश से धन लेकर आवे तो खुशी होती है, यानी अनुमोदना हो जाती है। प्रश्न-साधुपने में ऐसा अनुमोदन नहीं होता ? उत्तर-साधुपने मे तो 'मेरा लड़का -जैसी कोई बात रहती ही नहीं । 'मेरा लडका', 'मेरे सगे', 'मेरा मकान', 'मेरी मिल्कियत'-ये विचार विभाव दगा के है। साधु को यह दशा नहीं वर्तती, इसलिए अनुमोदना कहाँ से हो ? इसलिए वहाँ नौ कोटि का पच्चक्खाण है। प्रश्न-स्थानकवासी लोग आठ कोटि का पच्चक्खाण करते है, तो दो कोटि ज्यादा हुई ? उत्तर-वचन और काया से अनुमोदन न करना, ये दो अधिक कोटियाँ हैं। शास्त्र मे तो श्रावकों के लिए ६ कोटि का ही पच्चक्खाण कहा है । जो पृथक पडते है, वे अपनी प्रसिद्धि के लिए कुछ नया-नया करते हैं। सस्कृत में एक श्लोक है कि घटं भित्वा पटं छित्वा, कृत्वा गर्दभारोहणम् । येन केन प्रकारेण, प्रसिद्धः पुरुषो भवेत् ॥ 'बड़ा फोड़कर, कपड़े फाड़कर या गधे पर चढ़कर भी आदमी प्रसिद्ध हो जाता है।' यदि अपना बचाव करना हो तो इस प्रकार करें-"देश की दगा बड़ी खराब है । घोड़ा ओछा पशु है, इसलिए गधे पर सवारी करता हूँ।" इस बात पर 'हाँ' करनेवाले भी मिल ही जायेंगे और ताली बजानेवाले भी मिल ही जायेंगे। गधे पर बैठकर प्रसिद्धि प्राप्त करने का दूसरा तरीका यह है कि, चार को गधे पर बैठाये और स्वयं उसका शुभ प्रारम्भ करके अपनी प्रशसा कराये । आज धूतों के गले में हार पड़ते और अनीति से कमानेवाले को पूजे जाते आपने अनन्त देखे होंगे।
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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