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________________ धर्म के प्रकार कि 'कृपालु ! मेरे पुत्र को कुछ धर्म-मार्ग पर लगाइये, मेरी तो यह कोई बात मानता नहीं।' साधु-महात्मा ने उसे धर्मोपदेश दिया और कोई-न-कोई नियम लेने का आग्रह किया। तब उस उद्धत और स्वच्छंद पुत्र ने मजाक में कहा-'मै और तो कोई नियम नहीं ले सकता, पर मेरे घर के पास एक कुंभार रहता है। उसकी टाल देखकर खाने का नियम ले सकता हूँ।" ___साधु महात्मा ने कहा-"यह तो बड़ी अच्छी बात है। तू लिया हुआ नियम नरूर पालना। जो आदमी नियम लेकर तोड़ता है, उसकी दुर्गति होती है।" कुभार अपने बाड़े में एक ही जगह बैठकर बरतन बनाता था। उसका सर अपने घर से जरा उचक फर आसानी से देखा जा सकता था, इसलिए वणिकपुत्र ने नियम ले लिया और महात्मा अन्यत्र विहार कर गये। वणिक पुत्र नियमानुसार रोज कुमार की टाल देखकर भोजन करने लगा। लेकिन, एक बार जब वह काम से घर लौटा और टाल देखने के लिए उचका तो कुभार अपनी जगह पर दिखायी न पड़ा। इसलिए, वह कुम्भार के घर गया और कुम्भारी से पूछने लगा-"आज पटेल क्यों नहीं नजर पड़ रहे ?" कुम्भारी बोली-"वे तो सबेरे से मिट्टी की खान पर गये हैं। अभी तक आये नहीं। मैं भी उनकी राह देख रही हूँ। थोड़ी देर में ही उन्हें आना ही चाहिएँ ।" इधर वणिक पुत्र को बड़ी भूख लग रही थी और भोजन कर लेने की जल्दी मचायी जा रही थी, इसलिए वह रुक नहीं सकता था। वह उतावली से गाँव से बाहर मिट्टी की खान की ओर चला। वहाँ कुम्भार ने सुबह आकर मिट्टी खोदना शुरू किया कि, उसमें अशर्फियों का एक घड़ा मिला । वह बड़ा खुश हुआ। जिसने हमेशा कोदो का भोजन किया हो, उसे स्वादिष्ट सुगन्धित खीर का भोजन मिले तो -
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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