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________________ ५६८ आत्मतत्व-विचार आत्मा को पहचान ही कैसे सकते हैं ? गुरु, व्याख्यान, पुस्तक आदि उसके साधन हैं। कुछ यह कहते हैं कि, 'क्रिया ही करो, कारण कि, क्रिया बिना किसी की मुक्ति नहीं हुई। परन्तु, क्रिया में भी लक्ष्य तो आत्मशुद्धि का ही होना चाहिए। जिनका लक्ष्य आत्मशुद्धि नहीं है; वे क्रियाएँ कभी भी मुक्ति की प्राप्ति नहीं करा सकी ! इस तरह निश्चय और व्यवहार दोनों की समान आवश्यकता है। जिसने एक को अपना कर दूसरे की उपेक्षा की उसकी दुर्दशा हुई है। द्रव्य और भाव से भी धर्म के दो प्रकार होते हैं। इनमें द्रव्यधर्म व्यवहारधर्म है और भावधर्म निश्चयधर्म है। ___ शास्त्रकारो ने श्रुतधर्म और चारित्रधर्म-धर्म के ये भी दो प्रकार प्रतिपादित किये हैं। इनमें श्रुतधर्म द्वादशाग तथा तत्सम्बन्धी साहित्य का स्वाध्याय है और चारित्रधर्म सयमपालन है। इसके अतिरिक्त सर्वविरति और देशविरति-धर्म के ऐसे भी दो भेद प्रसिद्ध हैं। इनमें सर्वविरति साधु का धर्म है और देगविरति गृहस्थ का धर्म है। मनोदड, वचनदंड और कायदड से विरमना धर्म के तीन प्रकार हैं । मनोदंड से विरमना, यानी किसी को मन से दंड नहीं देना, किसी का अशुभ चिन्तन न करना । वचनदंड से विरमना, यानी किसी का वचन द्वारा अहित न करना, वचन से दुःख न उपजाना । और, कायदंड से विरमना, यानी काय की प्रवृत्ति से किसी को आघात न पहुँचाना, परिताप न पहुँचाना, किसी की हिंसा न करना। सम्यग्दर्शन, सम्यक ज्ञान और सम्यक्चारित्र का आराधन-ये भी धर्म के तीन प्रकार हैं। श्री उमास्वाति महाराज ने तत्त्वार्थाधिगम सूत्र के प्रारम्भ मे इन तीन वस्तुओं को ही मोक्षमार्ग कहा है १. जरथुस्त्र-धर्म में भी मन, वचन, काया की पवित्रता को धर्म माना है।
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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