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________________ ५७६ श्रात्मतत्व-विचार आभूषणो की निन्दा की तो तुम्हारी भी पूरी खबर लूँगा । अपने पूर्वओ के बनवाये इन सुन्दर आभूषणो को पहले मैंने कभी नहीं पहना था ।" एक के, मुख से इतना ही निकला था - " कुमार साहब " कि, कुमार साहब ने लकड़ी उठायी और एक एक की खबर लेनी शुरू कर दी। सभी राजसेवक अपने-अपने रास्ते चले गये । इतने में कुछ स्वजन सम्बधी आये और बोले - "लोहे के आभूषण आपको शोभा नहीं दे रहें, इन्हें उतार डालिये ।” कुमार ने कहा- "मुझे किसी की सलाह नहीं चाहिए। आप अपना काम चुप-चाप करें नहीं तो किसी को बुलाना पड़ेगा ।" वे भी वहॉ से चुपचाप चले गये । इस प्रकार जिन अन्य मित्रो ने कहा कि आभूषण लोहे के हैं, उन्हें भी अपमान का भाजन बनना पडा । इस प्रकार जिस व्यक्ति का मन पहले से व्युद्ग्राहित हो, और कटाग्रही बन गया हो वह किसी शिक्षा को चाहे वह कितनी भी भली क्यों न हो स्वीकार नहीं करनेवाला है । और, धर्म की प्राप्ति नहीं कर सकता । पक्षपात पर सुभट का दृष्टान्त सुभट नामक राज्याधिकारी था । उसकी पत्नी का नाम सुरगी था । वह बड़ी भली औरत थी । उन्हें एक पुत्र हुआ और उसका नाम सोनपाल रखा गया । पुत्र के जन्म के बाद सुरंगी बीमार हुई और उसका सौंदर्य जाता रहा । अतः सुभट का मन उस पर से हट गया । ऐसे ऊपरी प्रेम की उपमा कवि सध्या के बादल से देते हैं—वह उपमा कुछ मिथ्या नहीं है । कुछ समय बाद सुभट ने फुरगी नामक एक स्त्री से विवाह कर लिया । इस औरत का रंग गोरा था और हाव-भाव मे निपुण थी। अतः इसने मुमट के हृदय पर कब्जा कर लिया और सुभट उसके हाथ की कठपुतली बन गया । इस नगत में वचन और कामिनी दो बड़े आकर्षण की वस्तुएँ
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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