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________________ धर्म का आराधन को धारण करके आप या तो राजेश्वर-से लगेंगे या देवकुमार-से । पर, यह ध्यान में रखें कि, इस जगत् में त्वार्थियों की कमी नहीं है । अतः जो भी इन आभूषणो को देखेगा उसकी नीयत बिगड़ जायेगी और वह इन्हे प्राप्त कर लेने के लिए कितने ही प्रपच रचेगा । कोई ऐसा भी कहेगा कि, 'इन आभूषणों में क्या रखा है ? ये आपके योग्य नहीं है ! ये तो लोहे के बने है। मुझे दे दो', पर इन बातो पर आप ध्यान न दीजियेगा।" कुमार ने उत्तर दिया-"तुम्हारी गर्त मुझे स्वीकार है। मै इन आभूषणों को किसी को न दूंगा। जो कहेगा कि, ये तो लोहे के है, उनकी वरावर खबर लूंगा। इन्हें पहनने के लिए मुझे दे दो।" ___इस प्रकार कुमार का मन पहले से ही व्युग्राहित करके मंत्री ने शुद्ध लोहे के बने आभूपण राजकुमार को पहनने के लिए दे दिया । कुमार के हर्ष का ठिकाना न था । पूर्वजों के बनवाये आभूषण उसे पहनने को मिल गये थे-इसका नशा उसके दिमाग पर चढ गया था। प्रसन्नचित्त राजकुमार महल के प्रवेशद्वार के सम्मुख बैठा। इतने में कुछ याचक आये और बोले- "राजकुमार ! यह क्या ? ये लोहे के आभूषण आपको शोभा नहीं दे रहे हैं।" इन शब्दों का सुनना था कि, कुमार ने लकड़ी उठायी और दो को धड़ाधड़ चार हाथ दिये-'हरामखोरो । मुझे मूर्ख बनाकर मेरा आभूषण लेना चाहते हो ? मैं खूब समझता हूँ | मुझसे दूर ही रहना ।” याचक जान लेकर भागे। थोड़ी देर में राजसेवक आये। उन्हें भी राजकुमार के गले में लोहे का आभूषण देखकर आश्चर्य हुआ और हितबुद्धि से कहने लगे-"राजकुमार | आपने आज जो आभूषण धारण किये है, वे आपको बिलकुल ही नहीं शोभते । अपने खजाने मे आभूषणों की क्या कमी है, जो लोहे के इन आभूपों को आपने धारण किया है ?" । राजकुमार ने क्रोधपूर्वक कहा-"सॅभलकर बोलना ! यदि मेरे
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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