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________________ ५६८ आत्मतत्व-विचार नसीहत की और कई साधु-सन्तों द्वारा उपदेश दिलाया, लेकिन उसने अपनी वह आदत नहीं छोड़ी। दुष्ट आदमी अपनी कुटेव इस तरह थोड़े ही छोड़ता है ! लुब्धक जबान का मीठा था; इसलिए उसका दर्जा धीरे-धीरे बढ़ता गया । एक दिन सारे राज्य मे उसकी तूती बोलने लगी । उसकी वक्र दृष्टि से बचने के लिए और उसकी महरबानी प्राप्त करने के लिए गरजमन्द लोग उसे सलाम भरने लगे और नजराने देने लगे । लुब्धक धर्म को नहीं जानता था; सदाचार या सन्नीति को नहीं मानता था, परभव का कोई डर नहीं रखता था; इसलिए वह रिश्वत ले-लेकर मालदार बन गया । 2 लुब्धक के गाँव के नजदीक तुगभद्र नामक एक कुनबी रहता था । वह पैसे-टके से सुखी था । जाति-बिरादरी में भी उसकी अच्छी इनत थी । वह एक सक्षम व्यक्ति माना जाता था । वह बड़ा दान-पुण्य करता, साधु-सतों को जिमाता और गरीब, निराधार या या अपग लोगो को भी यथाशक्ति सहायता देकर सन्तुष्ट करता । उसकी इस उदारता और सेवापरायण वृत्ति के कारण उसे लोग 'भगत' कहने लगे । सब लोग उसका बड़ा सम्मान करते थे । यह देखकर लुब्धक का ईष्यालु हृदय जलने लगा । उसे विचार हुआ -- "बैल का दुम पकड़नेवाला यह पटेल पाँच भिखमगों को रोटी का टुकड़ा फेंक कर बडा धर्मात्मा बन बैठा है और मुझे कभी सलाम करने भी नहीं आता । अतः, उसे अवश्य देख लेना चाहिए ।" तुंगभद्र सलाम करने नहीं आता था, यह उसका भयंकर गुनाह था और इसलिए उसे दण्ड देने की तैयारी। इस जगत में दुष्ट व्यक्ति की दुष्टता भी किस हद तक जाती है ? लुब्धक ने तुगभद्र को फँसाने के लिए नाल फैलाया, पर वह व्यर्थ गया । तुगभद्र उसमें नहीं फॅसा । दूसरी बार भी -
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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