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________________ यात्मा देह आदि मे भिन्न है भयानक लगती है और उममे बचने के लिए वे अनेक प्रकार के प्रयत्न करते हैं, लेकिन वे सब व्यर्थ जाते है । मौत उन्हे छोड़ती नहीं है। सिंह जैसे बकरियों के झुट पर हटता है, वैसे काल उन पर दृटता है और छटपटाते हुए वे उसके पजे में आ जाते है । दश-दृष्टान्त-दुर्लभ ४ मानवभव की यह कैसी दुर्दया ? जिस भव से सफल दुःखों का अन्त लाने वाली मुक्ति, मोक्ष या परमपद की साधना हो सकती है, उसमे कुछ नहीं मधता। उल्टा दुर्गति का तांता बॉवा जाता है और भवभ्रमण अनेक गुना बढा दिया जाता है ! “पाँच जड वस्तुओं के मयोग से चैतन्यगक्ति कैमे पैदा हो गयी ?"यह पूछे जाने पर भूतवादी कहते है कि, 'जैसे शराब के किसी अग-जैसे कि धावडी का फूल, गुड, पानी-मे मद्यशक्ति नहीं है, फिर भी जब उनका समुदाय बन जाता है, तब उममे मद्यगति पैदा हो जाती हैं और वह अमुक काल तक स्थिर रहकर, विनाग की सामग्री मिलने पर, नष्ट हो जाती है, उसी प्रकार पृथ्वी आदि भूतो में चैतन्याक्ति दिखायी नहीं देती, लेकिन जब उनका समुदाय हो जाता है, तब वह प्रत्यक्ष हो जाती है और अमुक काल स्थिर रहकर विनाग को सामग्री मिलने पर नष्ट हो जाती है। परन्तु, यह उदाहरण ठीक नहीं है । धावडी के फूल, गुड, आदि मे मय की थोड़ी-बहुत मात्रा मौजूद है, इसी कारण उनका सयोजन होने पर मद्य की गक्ति उत्पन्न होती है। पर, भूतो में चैतन्य का कोई अग * मनुष्यभव की प्राप्ति कितनी दुर्लभ है, यह समझाने के लिए शास्त्रकारों ने चक्रवतों के चूल्हे का, पासे का, वान्य के ढेर का, जूए का, रत्न का, स्वप्न का, राधावेध का, चर्म का (सेवाल का ), समोल का तथा परमाणु का-ऐसे दश दृष्टान्त दिये है। एक आदमी को पहले चक्रवता के चूल्हे से भोजन कराया हो और फिर उसके राज्य के हर चूल्हे मोजन कराया जाये तो पुन. चक्रवती के चूल्हे भोजन करने की वारी पाना जितना दुर्लभ है, उतना ही मनुष्यभव पाना मुश्किल है। इसी प्रकार दशों दृष्टान्तों की योजना समझ लेनी चाहिए ।
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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