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________________ धर्म की पहिचान धन उड़ाता हो, अहंकारवश दूसरे के हितवचन न सुनता हो या कृतघ्न से प्रत्युपकार की आशा रखता हो तो उसे भी मूर्ख ही कहा जायगा। ___मनुष्य की तरह धर्म भी उसके लक्षण से जाना जाता है। हमारे ज्ञानी पुरुषों ने धर्म को पहचानने के लिए कुछ लक्षण बताये हैं, उन्हें श्री शय्यंभव सूरि महारान ने श्री दशवैकालिक सूत्र की प्रारंभिक गाथा में निम्न लिखित रूप मे बतलाया है धम्मो मंगल मुश्किळं, अहिसा संजमो तवो। देवावि तं नमसंति, जस्स धम्मे सया मणा ।। -धर्म उत्कृष्ट मंगल है। वह अहिंसा, संयम और तप लक्षण रूप है । ऐसा उत्तम लक्षणोंवाला धर्म जिसके मन में बसता है, उमे देव भी नमस्कार करते है। यहाँ सूत्रों के विषय में कुछ कहना चाहते हैं। सूत्र थोड़े शब्दों में बहुत कहते हैं और उनका प्रत्येक वचन टकसाली होता है। उस पर ज्योज्यो विचार किया जाये, त्यों-त्यों नया प्रकाश प्राप्त होता जाता है। अपर की गाथा भी ऐसी ही है । आज तक लार्खा श्रमण-श्रमणियो ने उनका अध्ययन किया है और उसमे से धर्म-सम्बन्धी मूलभूत प्रश्नों का समाधान पाया है। हर एक मुमुक्षु के मन में पहला प्रश्न यह उठता है कि जगत् में उत्कृष्ट मंगल क्या है ? उसका उत्तर कि 'धम्मो मंगलं मुकिट्ट' (धर्म उत्कृष्ट मगल है, ) इन शब्दों से मिल जाता है। आप पूछेगे 'पंचपरमेष्ठि नमस्कार' को भी उत्कृष्ट मंगल कहते हैं, वह क्यों ? इसका उत्तर यह है कि, पचपरमेष्ठी को किया जानेवाले नमस्कार भी धर्म-क्रिया है और धर्म है। इसीलिए उसे उत्कृष्ट मगल कहते हैं। यदि उसमे धर्मत्व अथवा धर्मभाव न होता तो उसे उत्कृष्ट मगल न कहते। उसमें धर्म की उत्कृष्ट मगलता है। मुमुक्षुओं के मन में, दूसरा प्रश्न यह उठता है कि, 'दुनिया में बहुत से
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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