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________________ धर्म की पहिचान ५४१ पोहर में ही हो तो दूसरे के कुलाचार के अनुमार उमे पीहर भेजा ही नहीं जा सकता। 'शास्त्र के विधि-निषेध ही धर्म हैं. यह अर्थ भी सन्तोषकारक नहीं है, कारण कि शास्त्र अनेक प्रकार के हैं और उनके विधि-निषेध भी तरहतरह के होते हैं । जैसे, एक शास्त्र कहता है कि रात में भोजन नहीं करना, तो दूसरा शास्त्र कहता है कि चन्द्रमा के उदय होने पर विधिपूर्वक भोजन करें। एक शास्त्र कहता है कि, योगसाधक को शरीर-सत्कार बिलकुल नहीं करना चाहिए, तब दूसरा शास्त्र कहता है कि योगसाधक को बराबर शरीर की संभाल रखनी चाहिए और स्नान आदि नियमित करने चाहिए । इन विरोधी बातो में से किसे स्वीकार करे किसे न करें ? इसलिए धर्म का अर्थ शास्त्रोक्त विधि-निषेध-पालन करना योग्य नहीं है। कुछ दिनो पहले एक सामाजिक कार्यकर्ता ने समाज और देश के नेताओ को पत्र लिखकर धर्म का अर्थ पूछा था। उसके उपर्युक्त उत्तर आये थे। इससे समझा जा सकता है कि, जिन्हें समाज के 'बड़े आदमी' कहा जाता है, उन्होंने भी धर्म के अर्थ पर समुचित विचार नहीं किया। धर्म का अर्थ गन् का अर्थ करने का काम वास्तव में बड़ा कठिन है। उसके लिए च्याकरण, कोश, परम्परा तथा विविध शास्त्रो का गहरा ज्ञान चाहिए । लेकिन, हमारे शास्त्रकार इस विषय में निपुण हैं, इसलिए उसका अर्थ यथार्थ रूप से कर सकते हैं और उसे ही हमें मान्य करना चाहिए । ___ शास्त्रीय शब्दो के अर्थ दिमागी तौर पर नहीं किये जा सकते । ऐसा करने से बड़ी गड़बड़ होती है और उत्सूत्र भाषण का दोषी बनना पड़ता है । कुछ दिन हुए, एक विद्वान ने पंचपरमेष्ठी के 'उपाध्याय' पद का अर्थ 'शिक्षक' किया था। उसे कौन मान्य करेगा १ उपाध्याय का अर्थ तो
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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