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________________ ५३८ श्रात्मतत्व-विचार ही इहलीला समाप्त करते हैं । इन आत्माओं को मनुष्यभव प्राप्त करने की क्या सार्थकता है ? यदि दीर्घ आयुष्य हो, तभी आत्मा मनुष्य-भव प्राप्त करके तीर्थयात्रा, जप-तप आदि अनेक विधियों से कर सकता है और मावन-भव को सार्थक कर सकता है । इस प्रकार दीर्घ आयुष्य के अनेक लाभ हैं । धर्म के आराधन से बल प्राप्त होता है। जो निर्वल है, उसे सभी सताते हैं । उसका जीवन ही वस्तुतः बरबाद है । इस प्रकार बल भी जीवन-साफल्य का एक अग है । धर्म के योग्य आराधन से निर्मल यश विद्या तथा अर्थ-सम्पत्ति - की प्राप्ति होती है । या किसको भला नहीं लगता ? चार आदमी किसी को बुलाएँ और आगे बैठाऍ तो तुरत छाती फूल जाती है । इस प्रकार जीवन मे सर्वत्र यश की प्राप्ति करने का उपाय धर्म की आराधना है 1 विद्वान् का सभी आदर करते हैं । के आधीन है । यह विद्या - प्राप्ति भी धर्माराधन और, 'अर्थ' अर्थात् लक्ष्मी यह भी धर्माराधन के तावे में है । जिसने धर्म का भली प्रकार आराधन किया हो, उसे ही लक्ष्मी की प्राप्ति सम्भव है । यदि कोई प्रवास में निकला हो, और घने जंगल में पहुँच जाये तो वहाँ व्यक्ति की रक्षा धर्म के अतिरिक्त भला और कौन कर सकता है ? हाथी, सिंह, सर्प, भूत, पिशाच आदि का वहाँ भय होता है । उन भय से व्यक्ति को उसका धर्म ही बचाता है । स्वर्ग के सुख की बात सुन कर तो आप सभी के मुँह में पानी आ जाता है। पर, यह सुख ऐसे ही नहीं प्राप्त हो जाता । इसके लिए धर्माराधन आवश्यक है । और, मोक्ष सुख जिसमे अनिर्वचनीय सुख होता है, उसकी प्राप्ति भी धर्माराधन से ही सम्भव है ।
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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