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________________ धर्म की शक्ति ५३५ ही माना जाता है । आठ अधकचरे वैद्यों की नहीं सुनी जाती, एक कुशल वैद्य की बात पर अमल किया जाता है। सौ मजदूरों की बात नहीं मानी जाती; एक इजीनियर के परामर्श को मान्यता दो जाती है । धर्मशास्त्र कहते है - " हजार अज्ञानी भी एक ज्ञानी का मुकाबला नहीं कर सकने | इसलिए सच्चे ज्ञानी का ही वचन मानना चाहिए । इस नगत् में ज्ञानी कम हैं, अज्ञानी अधिक हैं; धर्मी कम हैं, अधर्मी ज्यादा है । इसलिए, धर्म के विषय मे बहुमत की नीति अपनाने में पतन की पूर्ण आशंका है। 'बहुत से लोग करते हैं, इसलिए करना, ऐसी मनोवृत्ति आन लोगों मे दिखायी देती है; मगर वह उचित नहीं है । जो सत्य हो, हितकर हो, कल्याणकर हो उसी का आचरण करना चाहिए, फिर भले ही बहुत ही थोडे लोग उसका आचरण कर रहे हों। अशरणों का शरण धर्म है कर्म की सत्ता से छूटना हो, कर्म के बन्धन को तोड़ना हो, तो धर्म की शरण लेनी होगी । हमारे महापुरुषों ने कहा है कि - व्यसनशतगतानां क्लेशरोगातुराणां मरणभयहतानां दुःखशोकादितानाम् । जगति वहुविधानां व्याकुलानां जनानां, शरणमशरणानां नित्यमेको हि धर्मः ॥ - दुःख, आपत्ति या कष्ट, एक के बाद एक आते ही रहते हैं । तब सगे-सम्बन्धी, मित्र-स्नेही सब दूर रह जाते हैं, केवल धर्म ही शरण देता है । नत्र कि, आदमी विविध क्लेशों या रोगो से घिर गया हो तत्र भी धर्म ही शरण देता है । पूना के पास तलेगाँव नामक गाँव है । वहाँ के
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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