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________________ धर्म की आवश्यकता सार्थक है, जो अधिक-से-अधिक धाराधन में गुजारा जाता है । और, ऐसे रमात्माओ का ही नाम अमर रहता है। जो धर्म का यथाविधि आराधन करते है, उन्हें देवता भी नमस्कार करते हैं। नदिपेग मुनि की कथा सुनिए, आपको इमकी प्रतीति हो जायेगी। नदिपेण मुनि की कथा नटिपेण मुनि उत्कट त्यागी और तपस्वी थे । कालक्रम से वे गीतार्थ चने और उन्होने साधुओं का वैयावृत्य करने का अभिग्रह किया। इस अभिग्रह के अनुसार वे बाल, शैक्ष्य, ग्लान आदि मुनियों का अनन्य और अद्भुत् वैवावृत्य करते थे। उनके इस अभिग्रह की बात सर्वत्र फैल गयी थी और उसकी सुवास स्वर्गलोग में भी पहुंची थी। एक दिन इन्द्र ने टेवसभा में नदिरेण मुनि के अद्भुत् वैयावृत्य की प्रगसा की । वह एक देव से बात सहन न हुई । देवो में भी मत्सर, असूया आदि दोष होते हैं। उस देव ने नदिपेण मुनि की परीक्षा लेने का निर्णय किया। देव क्षणभर में चाहे जो रूप धारण कर सकते हैं और पल भर मे चाहे जहाँ पहुँच सकते है । वह देव न दिपेण मुनि के गॉव के पास आया और वहाँ उसने दो साधुओ का रूप धारण किया । उन दो साधुओ मे एक बूढा रोगी बना और दूसरा जवान साधु बना । इस जोडी ने नदिपेण की कैसी कठिन परीक्षा ली यह देखिए । नदिपेण मुनि का वह दिन पारणा करने का दिन था, इसलिए योग्य आहारपानी लाकर वे पारणा करने की तैयारी कर रहे थे। तब वह जवान साधु वहाँ आ पहुँचा और नंदिपेण मुनि से बोला-“हे भद्र । इस नगर के बाहर अतिसार रोग का एक बूढा मुनि क्षुवा और तृपा से
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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