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________________ ५१२ आत्मतत्व-विचार क्या ? तो अब प्रश्न है कि, कर्म-बन्धन से छूटने का क्या उपाय है ? कर्म-बन्धन के तोड़ने का विचार करते हुए धर्म-सुधर्म पर आना पड़ता है। अगर सुधर्म का आराधन योग्य रीति से हो तो ही कर्म का बन्धन टूटे और आत्मा उसके प्रभाव से मुक्त होकर अपना शुद्ध स्वरूप प्रकाशित कर सके ।' इसीलिए हमने पहले आत्मा का और फिर कर्म का विषय चलाया और. अब धर्म का विषय चलाते हैं। आत्मा और कर्म का विवेचन करते समय भी धर्म के सम्बन्ध में कुछ छुटपुट कहा गया था। अब उसकी पद्धति के अनुसार क्रमबद्ध विचारणा की जाती है । अपेक्षा विशेष से तो यह सारी ही व्याख्यानमाला धर्म सम्बन्धी ही है, क्योंकि हम धर्म के अतिरिक्त और किसी विषय पर व्याख्यान देते ही नहीं। हमारे शास्त्रकारो का कथन है कि मुनि को चाहिए कि भुक्त-कथा, स्त्री-कथा, देश-कथा, रान-कथा आदि विकथाओं का त्याग करे और परम धर्म-कथा ही कहे, जिससे कि स्वयं को स्वाध्याय का लाभ हो और श्रोताओं को धर्म का लाभ हो। ___ श्री उत्तराध्ययन सूत्र पवित्र जिनागम है और वह मुमुक्षुओं को धर्म प्राप्त करा देने के लिए ही पढा जाता है। उसके छत्तीसवें अध्ययन के अल्प ससारी आत्मा के वर्णन से इस व्याख्यानमाला का उद्भव हुआ है-यह तो आप जानते ही हैं। ____ महानुभावो ! आजकल सारे जगत पर भौतिकवाद का भूत सवार है। वह सफल होगा या नहीं यह अलग बात है, पर आज तो परिस्थिति खराब है। पहले तो बालक पर गर्भावस्था से ही धर्म के संस्कार डाले जाते थे। जन्मने के बाद वह धार्मिक वातावरण में ही परवरिश पाता था । बड़े होने पर भी जो शिक्षण दिया जाता था, उसमे भी धर्म की प्रधानता रहती थी। समाज और राज्य दोनों पर धर्म का वर्चस्व था। इसलिए पहले
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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