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________________ कर्म की निर्जरा ५०५ 'पारणा के दिनों मे भी वे सूखा भात, उड़द के बाकले, सत्तू आदि लेते थे, यानी रसत्याग का तप भी होता था। उसमें वृत्ति संक्षेप भी करते, यानी अभिग्रह रखते । चन्दनबाला के हाथ से पारणा हुआ, वह अभिग्रह कितना उग्र था। आयंबिल की तपश्चर्या भी जिनशासन में खूब होती आयी है और आज भी वर्धमान तप की सौ ओलियाँ पूरी करनेवाले भव्यात्मा विद्यमान हैं। (२) ऊनोदरिका-जीमते समय पेट को कुछ खाली रखना ऊनोदरिका है। पुरुष का आहार बत्तीस पास और स्त्री का आहार अठाईस ग्रास कहा है। और, ग्रास का परिमाण मुर्गी के अडे के बराबर, कि मुंह को ज्यादा खोले बिना सरलता से खाया जा सके । कहा है-आहार कम करने से शरीर और मन स्फूर्तिपूर्ण रहता है, इसलिए स्वाध्याय तथा ध्यान की प्रवृत्ति अच्छी तरह हो सकती है और ब्रह्मचर्यपालन मे भी सहायता मिलती है । ठूसकर खाना अस्वास्थ्यकर है और धर्माराधन की दृष्टि से भी अहितकर है। किसी अनुभवी ने कहा है-"आँखों त्रिफला, दाँतों नोन, पेट न भरिये चारों कोन।" 'आज आयबिल है, एकासन है, इसलिए दबाकर खायें' यह विचार ऊनोदरिका तप को भग करनेवाला है। हर तप अनोदरिकापूर्वक ही शोभा देता है। पारणा के समय इसका विवेक रखना आवश्यक है। (३) वृत्तिसंक्षेप-जिसके द्वारा जीवित रहा जा सके उसे वृत्ति कहा जाता है । भोजन और पानी वृत्ति है। उसका द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव से सक्षेप करना वृत्तिसंक्षेप कहा जाता है। उसे हम सामान्य रूप मे अभिग्रह भी कहते हैं । अमुक प्रकार की भिक्षा मिलेगी तो ही लेना द्रव्यसक्षेप है । एक, दो या अमुक घरों से ही भिक्षा मिलेगी तो लेना क्षेत्र, सक्षेप है। दिन के प्रथम प्रहर में या दुपहर के बाद ही भिक्षा लेने जाना काल सक्षेप है। साधु दोपहर के समय गोचरी करते हैं, इस दृष्टि से
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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