SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 573
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गुणस्थान 7 ४६६ राजा ने पूछा - " पर इतनी रात मे ?" कपिल ने कहा - " महाराज । आठ दिन से जल्दी पहुॅचने का प्रयास कर रहा था कि, आशीर्वाद देकर दो माशा सोना प्राप्त करूँ, पर वह मेरे भाग्य में लिखा हुआ नहीं था । उसका लाभ लेने के सवेरे उठा और इस ख्याल से कि कोई और जल्दी न लगा । उसी से यह दुर्दशा हुई ।" लिए आज बहुत पहुँच जाये; दौड़ने राजा ने कहा- "मुझे आशीर्वाद देने के लिये तुमने इतनी तकलीफ उठायी और वह भी सिर्फ दो माशा सोने के लिए ! इससे मैं तुम्हारी हालत को अच्छी तरह समझ सकता हूँ । हे भूदेव । मैं तुम पर प्रसन्न होकर कहता हूँ कि, तुम्हें जो माँगना हो माँगो, मै तुम्हारी इच्छा जरूर पूरी करूँगा ।" - संकट के बादल छिन्न-भिन्न हो गये थे । मन चाही चीज माँगने के लिए कहा गया था, इसलिए कपिल स्वस्थ हुआ, कुछ आनन्द मे आकर बोला - "महाराज ! कुछ समय दें तो विचार कर माँगूँ ।" राजा ने कहा- 'भले, विचार कर माँगना ।" अत्र कपिल विचार करने लगा - 'क्या माँगें ? दो माशा सोने मे तो कुछ नहीं होगा, इसलिए दस अशर्फी माँगें । पर, दस अशर्फियो मै भी क्या होगा ? इसलिए पचास अशर्फी माँगने दो।' फिर विचार आया कि 'पचास अशर्फी कुछ ज्यादा नहीं है । वह तो कुछ ही दिनों में खत्म हो जायेगी, इसलिए पाँच सौ अशर्फी माँगने दो । राजा के खजाने मे क्या कमी आ जानेवाली है !" इस तरह उसका ' लोभ गुन्नारे की तरह फूलने लगा । कपिल पॉच सौ से हजार पर, हजार से दस हजार पर, लाख पर और लाख से करोड़ अशर्फियो पर आ गया । आया कि करोड़पति से भी सामान्य सत्ताधीश बढकर होता है, इसलिए दस हजार से फिर विचार
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy