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________________ इकत्तीसवाँ व्याख्यान गुणस्थान [२] महानुभावो! आत्मा का विचार करते हुए, आपको ऐसा भास हुआ होगा कि, उसका स्वरूप बराबर समझना हो, तो उसके प्रतिपक्षी कर्म का स्वरूप बराबर समझना आवश्यक है। इसीलिए, हमने कर्म के विषय को लेकर उसके विविध अगो की विचारणा की। उस विचारणा के एक भाग के रूप में ही हम 'गुणस्थान' के स्वरूप के स्वरूप पर विचार कर रहे हैं और उसका कुछ विवेचन कर चुके है । आज का विज्ञान विकासवाद (थियरी आव इवोल्यूशन) को मानता है और बताता है कि, सूक्ष्म जंतुओं से मनुष्य तक का स्वरूप कैसे निर्मित हुआ । परन्तु, विकासवाद के सिद्धान्त मे सूक्ष्म जतुओं से नीचे की और मनुष्य से ऊपर की किसी अवस्था के लिए स्थान नहीं है। और, सूक्ष्म जन्तुओ से लेकर मनुष्य तक जो विकासक्रम बताया गया है, उसमें केवल विकास का वर्णन है, पतन का कोई वर्णन नहीं है। दूसरे शब्दों में कहे, तो यह विकासवाद बन्दर से आदमी बनने की शक्यता तो स्वीकारता है, पर आदमी से बन्दर बनना स्वीकार नहीं करता। इस तरहका विकासवाद अधूरा है; इससे हमारे मन का समाधान नहीं होता। इस विकासवाद की सबसे बड़ी कमी यह है कि, उसमे आत्मा को स्थान नहीं प्राप्त है, फिर उसमें पुनर्जन्म या गति आदि का विचार तो
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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