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________________ ४५६ प्रात्मतत्व-विचार को दलिया उदय में हैं, परन्तु चार अनन्तानुबन्धी कषाय और सम्यक्त्व मोहनीय के प्रदेश का रस से उदय नहीं है, उसे क्षायोपशमिक सम्यक्त्व होता है। और, जिस जीव ने चार कषायों एवं मिथ्यात्व, मिश्र और सम्यक्त्व इन तीनों प्रकार के दर्शनमोहनीय कर्म का पूर्णतया भय कर डाला है; उसे क्षायिक सम्यक्त्व होता है। जीव को प्रथम बार सम्यक्त्व की स्पर्शना हो, तब प्रायः औपशमिक सम्यक्त्व होता है और इस सम्यक्त्व को पाने के बाद मिथ्यात्व में गये जीव को फिर सम्यक्त्व हो, तब इन तीनों में से कोई एक सम्यक्त्व होता है। यह भी स्मरण रखना चाहिए कि, मनुष्यगति में रहनेवाले लोवो को एक समय पर इन तीन सम्यक्त्वों में से किसी एक प्रकार का सम्यक्त्व प्राप्त होता है, जबकि नारकी, तिर्यंच और देवगति में रहनेवाले जीवों को एक समय पर औपशमिक और क्षायोपशमिक म से एक प्राप्त हो सकता है । इसका अर्थ यह हुआ कि, क्षायिक मम्यक्त्व का अधिकारी मात्र सज्ञी पचेन्द्रिय मनुष्य ही है । समस्त भव-भ्रमण के दौरान में आत्मा को- कौन-सा समकित कितनी बार हो सकता है, इसे भी शास्त्रकारों ने बतलाया है। समस्त भव-भ्रमण में आत्मा को औपशमिक सम्यक्त्व अधिक-से-अधिक पाँच बार हो सकता है, क्षायोपशमिक सम्यक्त्व असख्यात बार हो सकता है और क्षायिक सम्यक्त्व मात्र एक ही वार हो सकता है। इस संसार में औपशमिक सम्यक्त्ववाले जीव असंख्यात हैं। मायोपशमिकवाले जीव असख्यात हैं और क्षायिक सम्यक्त्ववाले जीव अनन्त हैं । सिद्ध जीवो को भी क्षायिक सम्यक्त्व होता है; इसलिए इस सम्यक्त्ववालों की संख्या अनन्त है। यह सम्यक्त्व सिद्ध-जीवों को होता है।
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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