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________________ आत्मतत्व-विचार गुणस्थानों की संख्या . तात्विक दृष्टि से देखे, तो आत्मा के विकास की अवस्थाएँ असंख्य हैं; इसलिए गुणस्थानो की संख्या भी असख्य है। परन्तु, इस तरह उनका व्यवहार नहीं हो सकता, इसलिए शास्त्रकारो ने उनका वर्गीकरण चौदह विभागों में किया है। इन चौदह विभागो को ही हम चौदह गुणस्थान कहते हैं । अभी तक आपने ७-वे, १२-वें और १४-वें गुणस्थानों की बात सुनी है । १५-वाँ १८-वॉ अथवा २०-वॉ गुणस्थान आपने सुना नहीं। बात यह है कि, जैसे वार ७ हैं, ८-वॉ होता ही नहीं; तिथि पन्द्रह हैं, १६-वीं नहीं होती, उसी प्रकार गुणस्थान १४ मात्र हैं, १५-वा गुणस्थान होता ही नहीं। . गुणस्थानों के नाम पहले १४ गुणस्थानों के नाम बता दें। ऐसे तो उनको स्मरण रखना कठिन है पर शास्त्रकारों ने चौदह गुणस्थानों के नाम एक ही गाथा मे इस प्रकार पिरो दिया है कि व्यक्ति उन्हें सरलता से स्मरण कर सकता है। वह गाथा इस प्रकार है मिच्छे सासण-मीसे, अविरय-देसे पमत्त-अपमत्ते । निअट्टि अनियहि सुहूमुवसमखीणसजोगिअजोगि गुणा ।। १. मिच्छे = मिथ्यात्व गुणस्थान २. सासणसास्वादन सम्यग्दृष्टि गुणस्थान ३. मीसे= सम्यग् मिथ्यादृष्टि गुणस्थान ४. अविरय =अविरति सम्यग्दृष्टि गुणस्थान ५. देसे = देशविरति गुणस्थान ६. पमत्त-प्रमत्त सयत गुणस्थान ७. अपमत्त = अप्रमत्त सयत गुणस्थान ८. निअट्टि = निवृत्तित्रादर गुणस्थान
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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