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________________ १६ अात्मतत्व-विचार राजा-'जीव' और 'गरीर' भिन्न नहीं है, इसके लिए एक और प्रमाण भी मुनिये। मैं राजसभा में सिंहासन पर बैठा हुआ था। मंत्री आदि परिवार बगल में बैठे हुए थे। उस वक्त कोतवाल एक चोर को पकड कर लाया । मैने उस चोर को लोहे की कुम्भी में बन्द करवा दिया और उस पर लोहे का मजबूत ढक्कन लगवा दिया। उसे लोहे ओर सीसे से एक दम बन्द कर दिया और उसपर अपने विश्वास पात्र सैनिक रखकर उसपर बगबर देख-रेख रखी। थोडे दिन बाद उस कुभी को खुलवाकर देखा तो उम आदमी को मरा हुआ पाया । अगर 'जीव' और 'गरीर’ अलग होते, तो उस पुरुष का जीव कुमी में से किस तरह बाहर निकल जाता ? कुमी मं कहीं भी तिल बराबर भी छिद्र नहीं था। अगर ऐसा छिद्र होता, तो यह मानते कि उस रास्ते जीव बाहर निकल गया। लेकिन, उमने कहीं भी छिद्र या ही नहीं, इसलिए 'जीव' और 'शरीर' दोनो एक ही है और गरीर के अक्रिय हो जाने पर 'जीव' भो अक्रिय हो जाता है, मेरी यह मान्यता टीक है।" आचार्य-"ह राजन् ? → ममझ कि शिखर के घाट की घुम्मटवाली एक बडी कोठरी हो, जो चारो तरफ से लिपी हुई हो, जिसके दरवाजे पूर्णत. बैठते हो और ऐसी हो कि जिसमें जग-सी भी हवा न जा सके । उसमें कोई आदमी नगाडा और चोब लेकर बैठे, बैटकर उसके दरवाजे बन्द कर दे, नत्र उस नगाड़े को जोर से बजावे तो उस नगाड़े को आवाज बाहर निकलेगी या नहीं ?" राजा-"हाँ भते । निकलेगी तो मही।' आचार्य-"उस कोठरी में कोई छेट है ?? राजा-"नहीं, भते | उस कोठरी में कहीं छेद नहीं है।' आचार्य-“हे राजन् ! जिस तरह उम छिद्र-रहित कोटरी में मे आवाज बाहर निकल सकती है, वैसे ही छिद्र रहित कुम्भी में से 'जीव' भी बाहर निकल सकता है । अर्थात् धातु, पत्थर, भीत, पहाड़ आदि को भेद
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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