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________________ ४३८ आत्मतत्व-विचार ऊपर से वह यह भी बोली- "इस बालक के पिता के साथ भी मेरा रिस्ता है, वह सुनोः (७) इस बालक का पिता और मैं एक ही उदर से जन्मे हैं, इसलिए यह मेरा भाई है। (८) और वह मेरी माता का भर्तार हुआ, इसलिए मेरा पिता है। (९) और वह मेरे काका का पिसा हुआ, इसलिए मेरा दादा है। (१०) और वह पहले मुझसे विवाहा गया है, इसलिए मेरा भार है । (११ ) और वह मेरी सौत का पुत्र है, इसलिए मेरा भी पुत्र है। तथा ( १२ ) मेरे देवर का पिता है, इसलिए मेरा ससुर है।" ___"अब इस बालक की माता के साथ का रिश्ता भी सुन लो : (१३) इस बालक की माता ने मुझे जन्म दिया है इसलिए मेरी माता है। (१४ ) और मेरे काका की माता है, इसलिए मेरी दादी है। (१५) और मेरे भाई की स्त्री है, इसलिए मेरी भौजाई है। (१६ ) और मेरी सौत के पुत्र की स्त्री हुई, इसलिए मेरी पुत्रवधू है । ( १७ ) और मेरे भर्तार की माता है, इसलिए मेरी सास है। तथा ( १८) मेरे पति की दूसरी स्त्री है, इसलिए मेरी सौत है।" इस तरह कुबेरदत्ता साध्वी ने अठारह नाते कह सुनाये । सुनकर कुवेरदत्त अत्यन्त खिन्न हुआ और ससार से उसका मन उठ गया। कुबेरसेना दूर खडी हुई यह सब सुन रही थी। वह भी अत्यन्त पश्चात्ताप करने लगी। परिणाम स्वरूप कुबेरदत्त ने मथुरा में विराजे हुए एक पचमहाव्रतधारी मुनिश्वर के आगे दीक्षा ली और कुबेरसेना ने कुबेरदत्ता सा-वी के समक्ष सम्यक्त्व-सहित श्रावक के बारह व्रत ग्रहण किये। इस प्रकार कुबेरदत्ता साध्वी माता तथा बधु का उद्धार करके अन्यत्र विहार कर गयी और ग्रामानुग्राम विचरती हुई आत्मकल्याण करने लगी। आट करणों के नाम इस प्रकार हैं : (१) बंधन-करण, (२) निधत्त-करण, (३) निकाचना करण,
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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