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________________ ४३४ आत्मतत्व-विचार मनुष्य को विभिन्न रिश्तों के कारण विभिन्न नामों से बुलाया जाता है । अठारह नातो का प्रबन्ध सुनिये, इससे बात समझ में आ जायेगी। अठारह नातों की कथा महानगरी मथुरा में अनेक प्रकार के लोग बसते थे और अनेक प्रकार के व्यवसाय करके अपनी आजीविका चलाते थे। दुर्भाग्य से उनमे बहुत-सी स्त्रियाँ अपना शरीर बेचकर अपनी आजीविका चलाती थीं। उनमे कुबेरसेना अपने रूप-लावण्य के लिए विख्यात् थी। ___ एक बार उसके पेट में पीड़ा उठी। उसकी रखवाली करनेवाली . कुट्टनी ने एक होशियार वैद्य को बुलाया । वैद्य ने कहा-"इसके शरीर में कोई रोग नहीं है, लेकिन पुत्र-पुत्री का जोड़ा उत्पन्न हो रहा है, इसलिए यह स्थिति है।" वैद्य के चले जाने पर कुट्टनी ने कहा-'हे पुत्री ! यह गर्भ तेरे प्राण हर लेगा। इसलिए, इसे नहीं रखना चाहिए। लेकिन, कुबेरसेना के दिल में अपत्य प्रेम की उर्मि आयी और उसने कह दिया-“हे माता! भवितव्यता के योग से मेरे उदर में गर्भ उत्पन्न हुआ है, तो वह सकुशल रहे । उसके लिए मैं हर कप्ट सहन करूँगी, पर उसे गिराऊँगी नहीं।" ___कालातर मे कुबेरसेना ने पुत्र-पुत्री के जोड़े को जन्म दिया । उस समय कुट्टनी ने कहा-"इस जोड़े को पालने में तेरी आजीविका का मुख्य आधार जवानी नष्ट हो जायगी, इसलिए इसका त्याग कर दे।" कुबेरसेना ने कहा-"माता ! मुझे इस पुत्र पुत्री पर प्रेम है; इसलिए कुछ दिनों स्तनपान कराने दो फिर त्याग दूंगी !” दस दिन तक स्तनपान कराने के बाद कुवेरसेना ने उस पुत्र-पुत्री के नाम रखे-पुत्र का नाम कुबेरदत्त और पुत्री का नाम कुबेरदत्ता। सोने की मुद्रिकाओं पर उनके नाम खुदवा कर उन्हें पहनाई और दोनों बच्चों को एक पेटी में रखकर सव्या समय यमुना नदी में बहा दिया।
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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