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________________ कर्मबंध और उसके कारणों पर विचार ४२१ उपद्रव नहीं करते, इसलिए रत्न निकालनेवाले उसे पाने का प्रयास किया करते हैं।) वह महाव्यया से मरकर तीसरे नरक गया और नरक का आयुष्य भोगने के बाद, पाँच सौ धनुष लम्बा मत्स्य हुआ । उस समय कुछ मच्छीमारों ने उसके अग छेद कर उसकी महाकदर्थना की । वहाँ से वह चौथे नरक गया। इस तरह बीच में एक-दो भव धारण कर वह सातवें नरक में दो-दो बार उत्पन्न हुआ। उसके बाद श्वान, भुंड, गधा आदि के तथा एकेन्द्रिय आदि के हजारों भव धारण करके घोर दुःख भोगता रहा। जब उसका पाप बहुत कुछ क्षीण हो गया; तब वसन्तपुर नगर में वसुदत्त सेठ की पत्नी सुमति की कोख से उत्पन्न हुआ। वसुदत्त सेठ करोड़पति था, लेकिन उस पुत्र के गर्भ में आने पर उसका सब धन नष्ट हो गया और नव बच्चे का जन्म हुआ तो वह स्वयं मरण को प्राप्त हुआ। बच्चा पाँच वर्ष का हुआ कि माँ मर गयी । इसलिए, लोगों ने उसका नाम निष्पुण्यक रखा । वह बड़े दुःख से बड़ा हुआ। एक दिन उसका मामा उसे स्नेहपूर्वक अपने घर ले गया, तो उसी रात को उसके यहाँ चोरी हो गयी। इस तरह जहाँ-जहाँ वह गया, वहॉवहाँ कोई-न-कोई उपद्रव हुआ । अन्त में वह समुद्र के किनारे आया और वहाँ धनावह सेठ की नौकरी स्वीकार करके, उसके साथ जहाज मे यात्रा करने लगा। वह जहाज जब सही सलामत एक द्वीप पर पहुँच गया, तो निष्पुण्यक को लगा कि, "लगता है कि, मेरा दुर्दैव इस बार अपना काम करना भूल गया ।" लेकिन, वापसी मे वह जहाज टूट गया। उसका एक तख्ता निष्पुण्यक के हाथ में आ गया। उसके सहारे तैरकर वह समुद्र के किनारे आ लगा। वहाँ नौकरी की, तो उसके ठाकुर की दुर्दशा हुई। इसलिए, उसने निकाल बाहर कर दिया। वहाँ से भटकते-भटकते जगल में सेलक-यक्ष के मदिर में पहुंचा और उससे अपना सब दुःख कह कर एकाग्र चित्त से उसकी आराधना करने लगा।
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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