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________________ कर्मवध और उसके कारणों पर विचार ४१६ ___ अगर कोई यह कहे कि, मिथ्याज्ञान के बिना दुनिया का व्यवहार नहीं चलता, तो इससे वह धर्म नहीं हो जाता। आदमी को पत्नी के विना नहीं चलता, इसलिए वह विवाह करता है, पैसे के बिना नहीं चलता, इसलिए वह कमाता है । लेकिन, ऐसा होने पर भी कोई सुज्ञ इन्हे धर्म की सजा नहीं देता। व्यवहार का पोषण संसार का कारण है। पर, कोई आदमी दुःखी है और आप दयाभाव से उसे धधे में लगाते हैं; दयाभाव से उसकी सहायता करते हैं, तो यह संसार बढाने का कारण नहीं होता, क्योंकि उसमें आपकी दृष्टि में अनुकम्पा है । अनुकम्पा करनी चाहिए, यह भगवान् की आज्ञा है और उसमे शासन की प्रभावना भी है। इसलिए वह आत्मोन्नति का कारण है। व्यापार में जोड़ने से व्यवहार की वृद्धि होती है, यहाँ ऐसा नहीं है, बल्कि तथ्य तो यह है कि, उससे व्यक्ति धर्माभिमुख होता है और वह तो उसके बड़े लाभ की बात है। उस आदमी ने धधा किया या नहीं यह मदद करनेवाले को देखना चाहिए। दोयम, इसमें मुख्य रूप से चर्तमानकाल को लक्ष्य में रखना है । आप जो सहायता करें, वह पापप्रवृत्ति का या हिंसा का कारण न हो, तो वह धर्म का कारण बनेगा। (आप किसी स्त्री को वेश्या बनने के लिए या किसी आदमी को कसाई का धधा करने के लिए सहायता नहीं दे सकते । ) इसमें भविष्य पर दृष्टि नहीं रखना है । इस समय वह अच्छे काम के लिए पैसा लेता है, लेकिन भविष्य में वह पाप-कर्म करने लगे, उसके लिए आप जिम्मेवार नहीं हैं, कारण कि, आपने जब धन दिया, तो अच्छी भावना से अच्छे काम के लिए दिया था । अगर भविष्य का विचार करें, तो कोई किसी की सहायता ही न करे-तब तो आदमी यह भी सोचने लगेगा - 'जलते बाड़े में से गाय बचायी गयी तो वह कच्चा पानी पीयेगी और घास खायेगी-उसका दोष हमें लगेगा !' ऐसी मान्यता तक पहुँचने पर तो दयाधर्म का ही लोप हो जायेगा !
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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