SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 487
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कर्मवन्ध और उसके कारणों पर विचार ४०६ निकलती चली गयी । अन्त मे वह डिब्बी निकली। उसे खोला तो उसमे से बड़ी खुशबू आयी । उसने उमे भली भाँति सूंघा । उस डिब्बी में एक पत्र रखा हुआ था। सुबधु ने उसे पढ़ा। उसमें लिखा था-'जो आदमी इस डिब्बी को सूंघे उसे चाहिए कि उसी वक्त से जीवन“पर्यन्त स्त्री, पलग, आभूषण और स्वादिष्ट भोजन का त्याग कर दे और कठोर जीवन गुजारे, अन्यथा उसका नाश हो जायेगा।' सुबधु ने इसकी खातरी करने के लिए एक दूसरे आदमी को वह डिब्बो सुंघायी और फिर उसे स्वादिष्ट भोजन कराके, सुन्दर वस्त्राभूषण पहना कर पलग पर सुलाया, तो वह तुरन्त मर गया । अब सुबधु को चाणक्य के खत की सचाई का विश्वास हो गया। जिन्दा रहने के लिए उसने उसी समय से स्त्री, पलग, वस्त्राभूषण और स्वादिष्ट भोजन का त्याग कर दिया । सोचने लगा कि, चाणक्य ने खूब बदला लिया । __ इस प्रकार अनिच्छा से किया हुआ त्याग वास्तविक त्याग नहीं है । जो त्याग स्वेच्छा से एव समझदारी से किया जाये, वही सच्चा त्याग है। कषाय क्रोध, मान, माया और लोभ यह चार कषायें है। 'कष' का अर्थ है-संसार ! आय का अर्थ है लाभ || जिससे संसार-लाभ, ससरण, भव-भ्रमण, प्राप्त हो सो कषाय । कषाय का दूसरा अर्थ है-'जो जीव को कलुषित करें। कपाय आपके आत्मा को मलीन कर देती है। १. श्री प्रज्ञापना सूत्र के तेरहवें पद में कहा है कि - सुहदुहबहुसहियं, कम्मखेतं कसति जं च जम्हा । कलुसंति ज च जीवं, तेण कसाइत्ति बुच्चति ॥ -'बहुत सुख-दु ख सहित कर्म-खेत को जोतती है और जीव को कलुषित करती है, इसलिए कपाय कहलाती है।'
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy