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________________ कर्मवन्ध और उसके कारणों पर विचार ३६६ अगर मिध्यात्व है तो सब निरर्थक है । इसलिए, हे मुमुक्षुओ ! आप मिथ्यात्व से बाज आयें, मिथ्यात्व को दूर करें !! मिथ्यादृष्टि मनुष्य विविध प्रकार की क्रियाऍ करके, स्वजन सम्बन्धियों का त्याग करके तथा नाना प्रकारके कष्ट सहन कर के यह सन्तोष मान लेता है कि, उसने धर्म कर लिया, वह मन में प्रसन्न होता है, लेकिन जिस प्रकार अधा नायक शत्रु सेना को नहीं जीत सकता, वैसे ही मिथ्यात्व से अधा बना हुआ मनुष्य ससार सागर का पार नहीं पा सकता । इसलिए महानुभावो । आप मिथ्यात्व को दूर करें और कर्मबन्धन के एक कारण से बचें । जो उससे बच जायेंगे तो क्रमशः सबसे चच जायेंगे और इस दुस्तर संसार का पार पा सकेंगे । - विशेष अवसर पर कहा जायगा ! **:--
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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