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________________ र वा-८, २ . ! ! चाँदपोत, असपुर-१ फिर एक दिन चित्र सारथी प्रभात के पहर में राजा के पास गया और अभिवादन करके कहने लगा-“हे स्वामी! मैने आपके लिए सधे हुए चार घोडो की भेट भेजी है। आज आप उनकी परीक्षा कर ले। आज का दिन बडा रमणीय है, इसलिए इम कार्य के लिए योग्य है।" राजा ने कहा-"तू उन चारो घोड़ो को रथ में जोत कर यहाँ ले आ। इतने में मैं तैयार होता हूँ।" चित्र रय ले आया। प्रदेगी राजा उममे बैठकर श्वेतम्बिका नगरी के बीच में होकर निकला । चित्र सारथी उस रथ को बहुत दूर ले गया । तब गर्मी, प्यास और उडती धूल से घबड़ा कर राजा ने कहा-"चित्र, अब रथ को वापस ले चलो।" चित्र ने रथ को पीछे मोडा और उसे उस मृगवन-उद्यान के सामने लाकर खड़ा कर दिया, जहाँ कि केगीकुमार श्रमण अपने शिष्य परिवार के साथ ठहरे हुए थे। चित्र ने कहा-"महाराज । यह मृगवन-उद्यान है । यहाँ घोडो को जरा थकान उतारने दें और हम भी अपना श्रम दूर कर लें।" राजा की सहमति पाकर वह रथ को अन्दर ले गया और केगीकुमार के स्थान के पाम जाकर घोड़ो को खोलकर उनकी मार-मॅभाल करने लगा। राजा भी रथ से नीचे उतरा और घोडो के शरीर पर हाथ फेरने लगा। यह सब करते हुए उसने श्री केगीकुमार श्रमण को सभा में उपदेश देते हुए सुना । उनको देखते ही प्रदेगी विचारने लगा-"यह कौन जड़मुडी बैठा है ? यह क्या खाता होगा ? क्या पीता होगा ? कि गरीर से ऐसा अलमस्त और दर्शनीय लगता है और लोगो को यह ऐसा क्या देता है कि जिसके कारण इतनी बडी भीड़ यहाँ इकटी हुई है ?" उसने कहा-"चित्र | देख तो सही कि यह सब क्या चल रहा है; वह जड गला फाड़-फाड कर जड़ लोगो को क्या समझा रहा है ? ऐसे बेफिकरे लोगों के कारण हम ऐसे उद्यान में भी अच्छी तरह घूम-फिर नहीं
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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