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________________ कर्मबन्ध और उसके कारणों पर विचार ३६५ मिध्यादृष्टि को कर्म की निर्जरा कम होती है, सम्यग्दृष्टि को ज्यादा । मिथ्यादृष्टि को कर्म की निर्जरा अकाम, यानी समझ बगैर होती है; लेकिन सम्यग्दृष्टि को कर्म की निर्जरा सकाम, यानी समझपूर्वक होती है । मिथ्यादृष्टि पाप के उदय को घबराते हुए हाय-तौबा मचाते हुए भोगता है, सम्यग्दृष्टि पाप के उदय को बिना घबराये, शांति से भोगता है । सम्यग्दृष्टि जानता है कि, पूर्वकाल में मैंने इस कर्म को आमन्त्रित किया था; इसलिए वह आया है, अब इसे शाति से भोग लेना चाहिए । सम्यग्दृष्टि को आर्तध्यान कम होता है; चित्त में शांति रहती है और कुछ समभाव होता है, इसलिए उदय में आते हुए और सत्ता में रहे हुए कर्मों की निर्जरा होती है । जबकि मिथ्यादृष्टि को आर्तध्यान अधिक होता है, चित्त में शांति नहीं रहती और रागद्वेष की प्रबलता होती इसलिए नये कर्म ज्यादा चिकने बँधते हैं । सम्यग्दृष्टि थोड़े दुःख में ज्यादा कर्म काटता है, जबकि मिथ्यादृष्टि ज्यादा दुःख में थोड़े कर्म काटता है । दो प्रकार का सम्यक्त्व सम्यक्त्व दो प्रकार का है - (१) स्थिर और (२) अस्थिर । क्षायिक सम्यक्त्व स्थिर है, आने के बाद कभी नहीं जाता। दूसरे सम्यक्त्व अस्थिर हैं । औपशमिक और क्षायोपशमिक सम्यक्त्व आते हैं और जाते हैं । कभी मलिन विचार आयें और देव गुरु-धर्म से श्रद्धा उठ जाये, तब कहा जायेगा कि, सम्यक्त्व गया और मिथ्यात्व आ गया। मनुष्य सम्यक्त्व की भावना में आयुष्य बॉधेगा, तो देवगति का ही बाँधेगा और उसमें भी महर्द्धिक सौम्य प्रकृतिवाले देव का ही बॉधेगा । जबकि देव सम्यक्त्व में आयुष्य बाँधेगा तो मनुष्यगति का ही बाँधेगा, वह भी बहुत ऊँचे कुल में, सस्कारी कुटुम्ब में, धार्मिक वातावरण में
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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