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________________ कर्मवन्ध और उसके कारणों पर विचार बारहवें गुणस्थान मै कषाय का और चौदहवें गुणस्थान में योगनिरोध होता है । यह क्रम वस्तुतः आत्मा के विकास के क्रमानुरूप है। पहला कारण मिथ्यात्व मिथ्यात्व को महाशत्रु की, महारोग की, महाविप की और महाअन्धकार की उपमा दी गयी है, कारण कि, वह तमाम कर्मों की जड़ है । उसकी उपस्थिति में सम्यक्त्व की प्राप्ति नहीं होती। सम्यक्त्व के बिना सम्यक् ज्ञान नहीं होता और सम्यक् ज्ञान के बिना सम्यक् चारित्र नहीं होता । सम्यक् चारित्र के बिना मुक्ति नहीं मिलती। ससार-भ्रमण का प्रधान कारण मिथ्यात्व है। शास्त्रकारों ने कहा है 'मिच्छत्तं भवद्विकारणं' । मिथ्यात्व के जाने पर कर्मों को मानों राजयध्मा का रोग लग जाता है उन्हें नष्ट ही हो जाना पड़ता है। अर्धपुद्गलावर्तन के समय मे वह अवश्य नष्ट हो जाते हैं और आत्मा मुक्ति का शाश्वत सुख प्राप्त करता है। अभव्य आत्माएँ तो अनन्तकाल ससार में भ्रमण करती ही रहती हैं; कारण कि उनका मिथ्यात्व कभी दूर नहीं होता। वे सदा-सदा मिथ्यात्व में ही लिप्त रहती हैं। प्रश्न-"अभव्य आत्माओं को जान होता है या नहीं ?" उत्तर-"ज्ञान आत्मा का स्वभाव है, इसलिए वह अभव्य आत्माओं को भी होता है । लेकिन, यहाँ जान से तात्पर्य 'सम्यक्ज्ञान' से हो तो वह अभव्य आत्माओं को नहीं होता । सम्यक्त्व सहित ज्ञान सम्यकज्ञान है और अभव्य आत्माओ को सम्यक्त्व नहीं होता।" प्रश्न - "अभव्य आत्माओं को शास्त्र सिद्धान्त का ज्ञान होता है या नहीं ?"
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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