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________________ ३८८ श्रात्मतत्व-विचार सम्पत्ति नहीं है, बल्कि हमारे कट्टर दुश्मन की फौज है और वह हमारी दुर्दशा कर डालेंगे; तो वे कर्म बन्धन से दूर रहें और दूर न भी रहें तो भी जो कर्म बाँधे वे बहुत ढीले बाँधे, जिससे उन्हें भविष्य में बहुविध यातनाएँ भोगनी नहीं पड़ेंगी। ___ "एक वस्तु नितान्त अहितकारी है, यह जानते हुए भी मनुष्य उसका सर्वथा त्याग नहीं कर सकते, यह स्थिति कितनी शोचनीय है।" नमक के चटखारे के कारण प्राण गँवानेवाला श्रीमंत-पुत्र एक श्रीमंत गृहस्थ का पुत्र एकाएक बीमार पड़ गया । बचने की आशा नहीं दिखती थी। सगे-सम्बन्धी क्रन्दन मचाने लगे। इतने में किसी ने कहा-"यहाँ से कुछ दूर पर एक सन्यासी रहता है। वह बहुत नानकार है। उसे बुलाओ।" ___ लोग दौड़ कर सन्यासी के पास गये और विनती करके उसे घर ले आये। उसने उस लड़के की तबीयत देखकर कहा-“अगर आपको एक वात स्वीकार हो तो इस लड़के को दवा दूँ ।” माता-पिता ने पूछा-"वह बात क्या है ?” सन्यासी ने कहा-"मैं जो दवा दूंगा उससे आपका लड़का जी तो जायगा, पर उसे सदा के लिये नमक का त्याग करना पड़ेगा।" ___ "लड़का बचता है तो भले आजीवन नमक बिना खाये," ऐसा विचार करके उन्होंने शर्त मजूर कर ली। संन्यासी ने दवा दी और लड़का बच गया। लडका नमक-रहित भोजन करता रहा । उसकी तबीयत हर प्रकार से अच्छी रही । एक दिन माता-पिता आदि कार्यवशात् बाहर गये । लड़का और नौकर दो व्यक्ति घर में रहे। उस समय खारी बादाम और पिस्ते देखकर लड़के का मन ललचाया। उसने सोचा-"उसमे नमक आयेगा भी तो कितना यायेगा, वह क्या नुकसान करेगा ?” उसने नौकर
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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