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________________ कर्म की शुभाशुभता ३७६ ५४ गज चौड़ी और २७ गज मोटी सोने की एक पाट जगल में रास्ते की एक तरफ रखकर अन्तरिक्ष से घटनावली का अवलोकन करने लगी। ____ कुछ देर मे वहाँ दो राजपूत आये। उनमे से एक ने कहा-"सोने की यह पाट पहले मैंने देखी; इसलिए मेरी है।" दूसरे ने कहा-"हम दोनों एक साथ निकले थे, इसलिए इसमें हम दोनों का आधा-आधा हिस्सा है।" उसमें कहा सुनी हुई, गर्मागर्मी हुई और तलवारें खिची। दोनों लड़-भिड़ कर वहीं कटकर मर गये। उस पाट से कुछ दूर पर एक झोपड़ी थी। उसमें एक बाबाजी रहते थे। शाम के समय गाँव से भिक्षा मॉग कर वे अपनी झोपड़ी की ओर लौट रहे थे कि, उस पाट पर उनकी नजर पड़ी। पाट को देखते ही वे आनन्दमग्न हो गये। खाना पीना भूल कर विचार करने लगे कि, क्या उपाय करें । पाट उठ तो सकती नहीं थी कि, उठा कर झोपड़ी में रख देते; इसलिए उन्होंने उसके टुकड़े करके झोपड़ी मे ले जाने का विचार किया। ___ यह विचार करते-करते रात होने लगी, अँधेरा बढ़ गया । वहाँ ६ चोर उस रास्ते से चोरी करने के लिए निकले । उनमें से हर एक के हाथ में कोई-न-कोई हथियार था। सोने की पाट की चमक देख कर वे उस तरफ बढ़े और पाट के पास आये । वहाँ बाबाजी को बैठा देखा। चोरों ने पूछा-"बाबाजी, यहाँ क्यों बैठे हो ?” बाबाजी ने कहा-"यह मेरी झोपड़ी है और यह मेरी शिला है, इसलिए बैठा हूँ।" ___"तुम्हारे पास सोने की यह पाट कहाँ से आयी १" --एक चोर ने पूछा। "बहुत भक्ति करने पर भगवान् ने भेंट दी"-बाबाजी ने उत्तर दिया। "अरे ढोंगी ! तू तो साधु है। तुझे सोने की पाट से क्या करना है ? इसे तो हम ले लेंगे"-दूसरे चोर ने ललकार कर कहा।
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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