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________________ ३७२ श्रात्मतत्व-विचार यहाँ आप प्रश्न करेंगे - "कर्मों का प्रभाव आत्मा पर तो होता पर क्या आत्मा का भी प्रभाव कर्म होता है ?" इसका उत्तर यह है कि, जैसे कर्मों का आत्मा पर असर पड़ता है, वैसे ही आत्मा का भी प्रभाव कर्मों पर पड़ता है । जब आत्मा कार्माण वर्गणा को ग्रहण करके कर्मरूप में परिणमित करता है, तब वह विभाजित होता है और उसमें स्वभाव का निर्माण होता है, वह आत्मा के प्रभाव के कारण ही होता है । आत्मा चाहे तो कमों की स्थिति और रस में भी बड़ा परिवर्तन कर सकता है | यह वस्तुतः कर्म पर आत्मा का प्रभाव मात्र है । 2 कर्म प्रकृति में शुभाशुभ का व्यवहार निश्चय रूप में पूछे तो कहूँगा कि, वस्तुतः सभी कर्म अशुभ है, कारण कि वे मोक्ष प्राप्ति में अन्तराय खड़ा करते हैं; परन्तु व्यवहार से जो वस्तु अधिकाश लोगों को अच्छी लगती है वह शुभ मानी जाती है और जो अच्छी नहीं लगती वह अशुभ मानी जाती है, इसलिए कर्म की प्रकृति म शुभ और अशुभ का व्यवहार होता है । शुभ कितनी ? अशुभ कितनी ? कर्मों की उत्तर प्रकृतियाँ १५८ हैं, परन्तु बन्ध १२० का ही होता है; सत्ता में १५८ रहती हैं, उदय में १२२ ही आते हैं। ऐसा इसलिए होता है कि, १२० के बध मे दर्शनमोहनीय कर्म की एक मिथ्यात्वमोहनीय प्रकृति बधती है । फिर उसके तीन भाग हो मोहनीय, मिश्र - मोहनीय और मिथ्यात्व - मोहनीय ! १२२ प्रकृतियाँ आती है। जाते हैं- सम्यकत्वइस प्रकार उदय में बन्ध में १२० प्रकृतियाँ किस प्रकार होती हैं - यह भी स्पष्ट कर दें । ज्ञानावरणीय कर्म की उत्तर - प्रकृतियाँ ५ हैं, दर्शनावरणीय कर्म की ९ हैं, वेदनीय कर्म की २ है । ये सब बन्ध में गिनी जाती हैं । ये सब ५+ ९ + २ = १६ हुई | मोहनीय की २८ उत्तर प्रकृतियों में सम्यक्त्व - मोहनीय
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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