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________________ श्रात्मतत्व-विचार आचार्य महाराज का - गुरु महाराज का व्याख्यान श्रवण करने के लिए भी पर्याप्त योग्यता चाहिए। एक कवि ने कहा है IS प्रथम श्रोता गुण एह, नेह घरी नयणे नीरखे; हसित वदन हुंकार, सार पंडित गुण श्रवण दिये गुण वयण, सयणता राखे भाव भेद रस प्रील, रीज मनमाँही राखे । वेधक मनमाँहि विचार, सार चतुराई गुण आगला, कहे कृपा एवी सभा, तब कवियण भाखे कला । परखे । सरखे; 'श्रोता में पहला गुण यह होना चाहिए कि, वह वक्ता के सामने स्नेहभरी दृष्टि रखे और मुख को किञ्चित मलकाता रखकर हुकारा देता जाये । फिर वह वक्ता के पाण्डित्य की परीक्षा करे अर्थात् गुड-खल को समान न मानकर अपने मन में निर्णय करे कि वक्ता उत्तम, मध्यम या सामान्य है । वह कान देकर वक्ता के गुणकारी वचनो को भली भाँति सुने। वह आसपास के श्रोताओं के साथ सज्जनता रखे – अर्थात् 'देखकर बैटो', 'दिखायी नहीं देता ?', 'पैर क्यों लगाया ?' वगैरह वचन बोल कर तकरार न करे, क्या विपय चल रहा है और उसका कौन-सा अधिकार कहा जा रहा है यह व्यान में रखे और उसमें जिस रस का निरूपण हो रहा हो, उसे बराबर ग्रहण करे तथा उससे उत्पन्न होनेवाले आनन्द को अमुक अग मे व्यक्त करता रहे | फिर मन में विचार करे, अर्थात् हेय-नेय उपादेय का विवेक करे और उत्तम प्रकार की चतुराई दर्गावे । 'कृपा' कवि कहता है कि जहाँ ऐसे श्रेष्ठ गुण हो, वहाँ वक्ता को अपनी कला प्रदर्शित करने का उत्साह होता है ।' श्री केशीकुमार आचार्य का व्याख्यान एकचित्त सुनकर बहुत से लोगो को प्रतिबोध हुआ और चित्र सारथी ने भी सम्यक्त्वमूल श्रावक के बारह
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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