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________________ कर्म का उदय ३५७ श्रात्मा को आठ कर्मों का उदय होता है यह स्मरण रखिए कि आत्मा प्रत्येक समय सात कर्म बाँधता है, आठ कर्म सत्ता में होते हैं और आठ कर्मों का उदय होता है । आप प्रश्न करेंगे कि, आठ कर्म एक साथ उदय में आकर अपना फल किस प्रकार देते हैं ? अत इसका समाधान किये देता हूँ ! हर समय ज्ञानावरणीय कर्म का उदय चालू है, क्योंकि हमें केवलज्ञान नहीं है । अगर, ज्ञानावरणीय कर्म का उदय चालू न रहता, तो हमे केवलज्ञान हो जाता । अतः सिद्ध हुआ कि, ज्ञानावरणीय कर्म का उदय हर समय चालू रहता है । ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम भाव भी चालू रहता है; जिससे मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, मति - अज्ञान, तथा श्रुत अज्ञान, आदि संभव होते हैं । जिन्हे अवधिज्ञान तथा मनः-पर्ययज्ञान होता है, वह भी ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम-भाव के कारण ही होता है । 4 हर समय दर्शनावरणीय कर्म का उदय भी चालू है; क्योंकि हमें केवलदर्शन नहीं है | दर्शनावरणीय कर्म का भी क्षयोपशम भाव चालू रहता है । उसी से चक्षु-दर्शन, अचक्षु-दर्शन, आदि होते है । हर समय वेदनीय कर्म का उदय भी चालू रहता है, कारण कि, आत्मा साता - असाता का निरन्तर अनुभव करता है । हर समय मोहनीय कर्म का उदय भी चालू रहता है, क्योंकि हमारी आत्मा वीतराग दशा को प्राप्त नहीं हुई है । मोहनीय कर्म में भी क्षयोपशम भाव होता है; कारण कि कपायें कभी बढ़ती हैं, कभी घटती हैं । मोहनीय कर्म के उदय के कारण आत्मा रागी, द्वेषी, क्रोधी, मानी, कपटी, लोभी आदि बनती है और हास्य, रति, अरति आदि सब चालू रहते हैं । आयुष्य कर्म का उदय भी हर समय चालू रहता है, कारण कि देव,
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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