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________________ अध्यवसाय दे सकती है। हजार रुपये की आगा रखी हो और दस रुपये मिले यह कोई पूग फल नहीं है। स्थितिवन्ध में अध्यवसाय कारणभूत है कर्मका प्रदेशबंध और प्रकृतिबध होने में योगबल कारणभूत है। कर्म के स्थितिबंध होने मे अध्यवसाय कारणभूत हैं। आत्मा जिस अध्यवसायावस्था का वर्तन करता हो, उसी के अनुसार कर्म का स्थितिबध पडता है। स्थिति के प्रकार स्थिति अर्थात् कालमर्यादा तीन प्रकार की है-(१) जवन्य, (२) मध्यम, और (३) उत्कृष्ट । जो स्थिति छोटी-से-छोटी हो वह जघन्य कहलाती है, जो बड़ी-से-बडी हो वह उत्कृष्ट, और जो बीच की हो वह मध्यम कहलाती है। आठ कर्मों की स्थिति यहाँ आठ कर्मों की स्थिति दर्शायी जाती है.नबर कर्म जघन्यस्थिति उत्कृष्ट स्थिति ज्ञानावरणीय अन्तर्मुहूर्त ३० कोटाकोटि सागरोपम दर्शनावरणीय वेदनीय बारह मुहूर्त मोहनीय अन्तर्मुहूर्त ७० कोटाकोटि सागरोपम आयुष्य ३३ सागरोपम नाम आठ मुहूर्त २० कोटाकोटि सागरोपम गोत्र अन्तराय अन्तर्मुहूर्त ३० कोटाकोटि सागरोपम or of m x 5 w a v
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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