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________________ आठ कर्म ३३६ करना, दूसरे जीवो का दान लाभ- भोग-उपभोग में अन्तराय करना, -मत्रादिक के प्रयोग से दूसरे का वीर्य हनना, छेदन - भेदनादि से दूसरे की इन्द्रियो की शक्तियों का नाश करना, आदि कारणो से अन्तराय कर्म का चन्च होता है । इस तरह आठ कर्मों की उत्तर प्रकृतियाँ १५८ हुई । उनकी तालिका यहाँ दी जाती है ज्ञानावरणी दर्शनावरणी वेदनीय मोहनीय आयुष्य नाम गोत्र अन्तराय कर्म की उत्तर प्रकृति }" 33 }} " "" " " " "" 35 "" " در "} "" "} " "} "" ܙܙ ܙܙ २ २८ १०३ २ ५ कुल १५८ आठ कर्मों में से ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय और अन्तराय ये चार कर्म घाती कहलाते हैं, कारण कि वे आत्मा के मूल गुणो — ज्ञान, दर्शन, क्षायक सम्यक्त्व तथा चारित्र और वीर्य का घात करते है । शेष -चार कर्म – वेदनीय, आयुष्य, नाम और गोत्र अघाती कहलाते हैं, कारण कि वे आत्मा के मूल गुणो का घात नहीं करते । आत्मा की सच्ची लड़ाई घाती कर्मों के साथ ही है । घाती कर्म दूर हो जाये तो केवलज्ञान और केवलदर्शन प्रकट हो जाये तथा वह आत्मा अवश्य मोक्ष जाये । शेष चार कर्मों का अन्त समय पर नाश हो जाय । 1 कर्मों के सम्बन्ध में अभी बहुत कहना है, वह अवसर पर कहा जायगा । ***०**
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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