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________________ आठ कर्म ३३३ संस्थान अर्थात् आकृति । यह भी ६ प्रकार की होती है समय तुरस्त्रादि । __ वर्ण-गरीर, अग, उपाग, अगोपाग, आदि के वर्ण का कारण वर्णनामकर्म है । वर्ण पॉच -(१) लाल, (२) पीला, (३) सफेद, (४) नील और (५) श्याम । ___ रस-गरीर आदि के रस का कारण रसनामकर्म है। रस पाँच हैं--(१) मीठा, (२) खट्टा, (३) कषाय (कसैला), (४) कड़वा और (५) चरपरा। गंध-गध के दो प्रकार हैं : (१) सुगंध और (२) दुर्गन्ध । स्पर्श गरीर आदि के स्पर्श का कारण स्पर्श नामकर्म है। स्पर्म आठ हैं : (१) गीत, (२) उष्ण, (३) स्निग्ध, (४) रुक्ष, (५) मृदु,, (६) कठिन, (७) हलका और (८) भारी । श्रानुपूर्वी-देह छोडने के बाद जीव, बाँधी हुई गति के अनुसार, नयी गति में पहुंचता है। उसे इस गति में पहुंचाने वाला कर्म आनुपूर्वी नामकर्म है । उसके चार प्रकार हैं : (१) देवानुपूर्वी, (२) मनुष्यानुपूर्वी, (३) तिर्यञ्चानुपूर्वी और (४) नरकानुपूर्वी । विहायोगति–जीव की गमनागमन प्रवृत्ति में नियामक होनेवाला कर्मविहायोगति-नामकर्म है। उसके दो प्रकार है : शुभ विहायोगति और अशुभ विहायोगति । हस और हाथी की गति शुभ गिनी जाती है और ऊँट और कौवे की अशुभ गिनी जाती है। * छह सहनन तथा छह सस्थान के लिए देखिए तीसरा व्याख्यान ।
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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