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________________ ३२६ पाठ कर्म उस जंगल में एक इमली के पेड पर एक भूत रहता था। ( भूत को हम व्यंतर जाति का देव मानते है ) भूत ने उसकी प्रार्थना सुनी । सुनकर उसकी परीक्षा लेनी चाही। वह पिशाच का भयकर रूप धारण करके मामने आया और बोला-"मैं मौत हूँ। मुझे भगवान् ने भेना है।" ___ लकड़हारा उसे देखकर बड़ा घबराया। अपनी इतनी दुःखी और दरिद्रावस्था मे भी वह सचमुच मरना नहीं चाहता था। बोला-"मैने तुझे इसलिए याद किया था कि यह लकड़ियों का बोझा उठाकर मेरे सर प्पर रख दे।" तात्पर्य यह कि दुःख मे भी आदमी मरना नहीं चाहता। आयुष्य दो प्रकार का है-(१) सोपक्रम और (२) निरूपक्रम शस्त्र, विष, अग्नि तथा दूसरे अकस्मातो के कारण जिसकी कालमर्यादा हीन हो जाये, वह सोपक्रम आयुष्य है और हीन न हो सके वह निरूपक्रम है। तिर्यञ्च और मनुष्य सोपक्रम आयुष्यवाले होते है। लेकिन, उसमें कुछ अपवाद हैं । असंख्यात वर्ष के आयुष्य वाले तिर्यश्च, युगलिक मनुष्य चरम गरीरी ( यानी उसी भव से मोक्ष जाने वाले) तथा शलाकापुस्प ( अर्थातू तीर्थकर, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव और प्रतिवासुदेव ) निरूपक्रम आयुष्य वाले होते हैं। आत्मा चार प्रकार का आयुष्य किस प्रकार बाँधता है ? वह आपको बताते है । जो आत्मा अधिक आरभ करे, बहुत परिग्रह रखे और रुद्र'परिणामी हो वह नरक का आयुष्य बाँधता है । दूसरे प्राणियों को दुःख देने की कषाययुक्त प्रवृत्ति को आरंभ कहते हैं । भोग-उपयोग की वस्तुओ के सग्रह की कापाय-युक्त प्रवृत्ति परिग्रह कहलाती है । आज आरभ और परिग्रह दोनों की वृत्ति जोर पकड़ रही है, यह क्या जाहिर करती है ? जो आत्मा माया का सेवन करती है, वह तिर्यचका आयुष्य बाँधती
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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