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________________ २६६ अात्मतत्व-विचार स्तवन, सज्झाय, यादि मे वह अनेक बार आया है। वहाँ अष्टकर्म से कर्म की इन मूल आट प्रकृतियों को ही समझना चाहिए। आयुष्य-कर्म का बंध कब और कैसे होता है ? कर्म की आठ प्रकृतियो में से आयुष्य-कर्म का बध एक ही बार होता है । शेष सात प्रकृतियो का वध समय-समय पर होता रहता है। कोई भी संसारी आत्मा ऐसी नहीं होती जो कि अपने भव मे आयुष्यकम बाँधे बगैर रहे। आयुष्य-कर्म की अवधि तक ही जीया जा सकता है, उसके पूरा होते ही देह छोड़नी पड़ती है और नयी देह धारण करनी पड़ती है। आपने बम्बई से सूरत तक टिकट निकाला हो तो बम्बई से सूरत तक ही यात्रा करनी पडती है । सूरत स्टेशन पर नीचे उतरना ही पड़ता है। इससे आप बात भली प्रकार समझ गये होगे।। पिछले जन्म मे आप जो आयुष्य-कर्म बाँधकर आये, उसे इस जन्म में भोगेगे और वर्तमान जन्म में जो आयुष्य-कर्म बाँधेगे उसे अगले जन्म मे भोगेंगे । जब तक आपका आयुष्य हो तब तक जिन्दा रह सकते हैं और जीवन का सदुपयोग करें तो आत्महित कर सकते है । अगर, यह जीवन यूँ ही बरबाद कर दिया, तो भारी कर्मबंध होगा और उसके फल भोगने के लिए विविध योनियो में परिभ्रमण करना पड़ेगा। वहाँ कैसे-कैसे दुःख भोगने पड़ते हैं, यह आप अच्छी तरह जानते हैं। इस जन्म में कैसा आयुष्य बॉधना यह आप के हाथ में है । अगर दान, गील, तप, भाव आदि का आराधन करेंगे तो मनुष्य या देव का आयुष्य बाँध सकेंगे और अगर भोग-विलास या दुराचार में पड़ेगे तो तियेच या नारकी का आयुष्य बॅवेगा। ___ आप मानते है कि ज्योज्यों दिन बीतते हैं, त्यो त्यो आपकी आयु बढती है ! लेकिन, यह एक प्रकार का भ्रम है. एक दिन गया कि उतनी
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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