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________________ बीसवाँ व्याख्यान योगवल महानुभावो । हम कर्म के विषय में आगे बढे, उससे पहले यह जान लेना आवश्यक है कि, हर एक शास्त्र के अपने पारिभाषिक शब्द होते है। उन्हें बराबर ध्यान में रखना चाहिए, अन्यथा अर्थ का अनर्थ हो जाता है । कोई कहे कि 'सैंधव लाभो' तो वहाँ अगर भोजन का प्रसग हो तो, सेंधा -नमक लाना चाहिए । और अगर लड़ाई का प्रसंग हो तो घोडा लाना चाहिए । 1 गत व्याख्यान मे हमने कर्मबंध के विषय मे कुछ विवेचन किया था और उसमें कर्मबन्ध के कारण बतलाये थे । उन कारणो में चौथा कारण 'योग' था । । शास्त्रो में 'योग' शब्द का प्रयोग बहुत सी जगह होता है । यहाँ यह भी कहा गया है कि 'योग से कर्मबंधन टूटता है ।' लेकिन, हम यहाँ यह कहना चाहते है कि 'योग से कर्मबन्धन होता है।' इन दोनो कथनो में परस्पर विरोध दिखता है, लेकिन वास्तव में परस्पर विरोध है नहीं । सर्वज्ञ वीतराग भगवत-प्रणीत शस्त्रो मे परस्पर विरोध होता ही नहीं है । यह दोप आपकी समझ का है । उसे आप शास्त्रो पर थोपते है । थोड़ा स्पष्टीकरण से यह बात समझ मे आ जायगी । जहाँ यह कहा 1
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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