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________________ २८२ श्रात्मतत्व-विचार पालन करता हॅू। मेरे धंधे में बहुत से जानवरो का पालन-पोषण भी होता है । अतः मै धर्मी हॅू और इसलिए मैं इधर आया हूँ । - कलाल बोला – “मै शराबियो की शराब पीने की तलब पूरी करके अपने धर्म का पालन करता हूँ। मेरी शराब पीकर लोग दुनिया के दुःखदर्द भूल कर स्फूर्ति में आ जाते है और स्वर्ग - मुख का अनुभव करने लगते हैं । इसलिए अपने को धर्मी मानकर इस सफेद महल मे आया हूँ ।" वेश्या ने जवाब दिया- " मैं बहुत से लोगों का मनोरंजन करती हूँ और उनकी विपयज्वाला बुझाती हूँ । इसलिए एक धर्मात्मा की हैसियत से यहाँ आयी हूँ ।" किसान ने कहा - " तमाम पवित्र पुरुष जो अन्न खाते है, उसे पैदा करने वाला मै हूँ, सब पर मेरा बड़ा उपकार है । इसलिए सफेद महल में आया हूँ ।" व्यापारी ने बतलाया - "लोगो को आय- दाल, नमक- मिर्च, घी तेल आदि जरूरत की चीजों को मै पहुँचाता हूँ । मेरा उन पर बडा उपकार है । इसीलिए मैं यहाँ आया हूँ ।" इसी तरह सबने अपने-अपने धंधो का उपकार गिनाया और अपनी गणना धर्मी में करायी । तब मत्रीश्वर अभयकुमार काले महल में गये। वहाँ बैठे थे । वे चारों सद्गृहस्थ थे, श्रद्धालु थे, विवेकी थे धर्म का आराधन करने वाले थे। फिर भी, वहाँ आये थे दो को तो मत्रीश्वर जानते भी थे । 1 । उनमे से एक केवल चार पुरुष और यथाशक्ति मंत्रीश्वर ने पूछा - "आप इस काले महल में सफेद महल में जगह नहीं मिली ?" उन्होने जवाब हम तो समझ-मोचकर ही इस महल में आये है सफेद महल में दाखिल होने की योग्यता नहीं है। क्यों आ गये ? क्या दिया- "मंत्रीस्वर ! क्योंकि अभी हम में हमने पाप-पुण्य के
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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