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________________ आत्मसुख २४१ जब किसी चीज की इच्छा हो और वह न मिले तो दुःख, कष्ट, अशाति होती है । लेकिन, मोक्ष की अवस्था मे तो किसी भी प्रकार की इच्छा ही नहीं होती, कारण कि वहाँ सर्व अर्थ सिद्ध हुए होते हैं । फिर वहाँ दुःख, कष्ट या अशांति कहाँ से हो ? यह तो आप जानते ही होंगे कि, इच्छायें वासना के कारण उत्पन्न होती हैं, पर मुक्तावस्था में तो सर्व वासनाओं का क्षय हो चुका होता है, इसलिए वहाँ किसी प्रकार की इच्छा ही नहीं होती । दूसरे, इच्छा होने मे एक प्रकार का मोहजन्य मनोव्यापार निमित्त भूत होता है; लेकिन मुक्तावस्था में न तो कोई मोहजन्य व्यापार होता है, न इन्द्रियाँ होती हैं और न किसी प्रकार का शरीर होता है । उसमें मात्र आत्मा ही शुद्ध स्वरूप से विराजमान रहता है, इसलिए वहाँ मनोव्यापार होने का या इच्छा पैदा होने का सवाल ही नहीं है । 'शरीर और इन्द्रियो के बिना आत्मा अकेला कैसे रहता होगा ?' - यह प्रश्न भी कुछ लोग करते हैं । इसका समाधान यह है कि, आत्मा एक स्वतंत्र द्रव्य है, इसलिए दूसरे द्रव्यों की तरह वह भी आकाश में अकेला रह सकता है । 'शरीर-रहित आत्मा आकाश के किस भाग में रहता है ?" इसका जवाब यह है कि, आत्मा की स्वाभाविक गति ऊर्ध्व है । इसलिए, जब वह सकल कर्मों से रहित हो जाता है तब सीधी ऊर्ध्वं गति करता है और लोक के अग्र भाग में जाकर ठहर जाता है। जैसे कि तूम्बी, अगर अन्य वजनी वस्तुओं से भारी नहीं कर दी गयी हो तो सीधी पानी की ऊपरी सतह पर आ जाती है । आत्मा अलोकाकाश में इसलिए नहीं चला जाता कि, वहाँ गति सहायक धर्मास्तिकाय द्रव्य की और स्थिति सहायक अधर्मास्तिकाय द्रव्य की विद्यमानता नहीं है । १६
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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