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________________ श्रात्मा की शक्ति २०१ जलसे का आनन्द ले रहे थे । वहाँ वह कौआ आ पहुँचा और मुनन्दा को देखकर हर्ष के आवेग में 'कॉव-काँव' करने लगा। उसके स्वर की कर्कशता गाने में बाधा डालने लगी । राजा का इशारा पाकर सिपाहियों ने एक तीर छोड़कर उसे समाप्त कर दिया | पॉचवे भव मे रूपसेन ह्स हुआ और राज-महल के बगीचे के तालाब मे बड़ा होने लगा । एक बार सुनन्दा को देखकर उसके दिल में पूर्व राग उत्पन्न हुआ। वह उड़-उडकर मुनन्दा के शरीर पर पड़ने लगा । इससे सुनन्दा उकता उठी । उसने सिपाही को बुलाया । उसने आकर हंस को मार डाला । विषयवासना आत्मा को जन्म-जन्मान्तर मे कैसा रखड़ाती है और उसका क्या हाल होता है, यह इससे समझा जा सकता है । छठें भव में वह हिरन हुआ और जगल में रहकर अपना पेट भरता रहा | एक बार सुनन्दा राजा के साथ शिकार देखने जगल में गयी । वहाँ शिकारियो ने बाजा बजाया । हिरन उसे सुनने आये। उनमें वह हिरन भी आ पहुँचा । वह सुनन्दा को देखकर परम हर्ष अनुभव करने लगा | वह सुनन्दा का रूप देखने में इतना लीन हो गया कि उसे और किसी की खबर न रही । इतने मे राजा ने बाण मारा और वह बिंध गया । राजा ने उसका मास पकाने का हुक्म दिया । सेवक उसे राजवाटिका मे ले आये वहाँ उसका मास पकाया गया । राजा-रानी उस हिरन का मांस खाते जा रहे थे और उसकी तारीफ करते जा रहे थे । उस समय वहाँ दो मुनि निकले । वे जानी थे । सुनन्दा और रूपसेन का चारित्र जानकर अपना सर हिलाने लगे । यह देखकर राजा विचार मे पड़ गया । उसने उन मुनियों को बुलाकर सर हिलाने का कारण पूछा। मुनिवर कहने लगे - " इस बात को होगा, इसलिए इसकी जानकारी रहने ढो ।” का आग्रह होने पर उन्होने अथ से इति तक सारी जानकर आपको दुःख लेकिन, राजा और रानी कहानी सुना दी । उसे
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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