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________________ १६६ श्रात्मतत्व- विचार आत्मा की है । जैसा उसके बाद वे प्रभु को उसी प्रकार जन्मस्थल पर वापस ले जाते हैं और माता की गोद में सुलाकर सब अपने स्थानों को चले जाते है । तीर्थंकर में जो अनन्त शक्ति होती है, वह तीर्थंकर की आत्मा है वैसी ही हमारी आत्मा है मूलभूत शक्ति में कोई अन्तर नहीं है । दिखता है कि हमारी शक्ति कर्मों से दबी हुई है, प्रकट रूप में है। सचमुच, हमारी हालत बकरिया सिंह जैसी है । । आत्मा के गुणो में या पर, इस समय अन्तर इसलिए तीर्थंकर देव मे करिया सिंह का दृष्टान्त एक गड़रिये को वन मे बकरियों चराते हाल का जन्मा हुआ शेर का बेच्चा मिल गया । वह उसे घर ले आया और बकरी का दूध पिला-पिला कर वडा किया | वह सिंह था; पर बकरियो के साथ ही हिरता फिरता और उन्हीं के साथ खाता-पीता, इसलिए अपने को बकरी ही मानता और बकरी की तरह ही वर्तन करता । एक दिन सब बकरियो के साथ वह वन में चरने गया । वहाँ एक सिंह आ पहुँचा और गर्जना करने लगा । सुनकर सब बकरियाँ भागने लगीं । उनके साथ वह बकरिया सिंह भी भागने लगा । यह देखकर वन के. सिंह ने कहा---'" अरे भाई ! मेरे दहाड़ने से बकरियाँ भागे तो ठीक, पर तू क्यो भागता है ? तू तो मुझ जैसा शेर है । " बकरिया सिंह बोला - "तू झूठ बोलता है । मैं शेर नहीं बकरी हॅू। तेरा खाद्य होने के कारण डर के मारे भाग रहा हूँ ।" वन का शेर समझ गया— "यह बहुत दिनों से बकरियो की संगत मे रहा है, इसलिए अपने को बकरी मान बैठा है ।" इसका भ्रम दूर करना चाहिए | उसने कहा - "भाई ! तू जरा अपने अग-प्रत्यंगो को तो देख कि वे मुझसे मिलते हैं या बकरियो के अग-प्रत्यागो से ? अपने पजे, अपनी पूँछ, अपनी कमर देख ! तेरा मुख भी मेरे समान है, बकरियों जैसा
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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