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________________ आत्मा की शक्ति भगवान् ने मेरे मन का समय दूर करने के लिए अपना अंगूठा दबाया उसका प्रताप है। सचमुच प्रभु की शक्ति अगाध है । उसे का और क्रोध करने पर पश्चात्ताप हुआ और वह भगवान् के चरणो में गिर कर अमा-याचना करने लगा। फिर सर्वत्र शान्ति हो गयी। तर्क करनेवालो, जैनेतरो, अरे ! तुम मे दयानन्द सरस्वती-सरीखा भी तर्क करता है-"भगवान् सहज अँगूठा दबाये और मेरु-पर्वत हिल उठे, तो फिर जब वे चलते होगे तब पृथ्वी कितनी कॉपती होगी ? उस वक्त जमीन में गडढे क्यो नहीं पडते जाते?" पर, ऐसा प्रश्न करनेवाले सामान्य-बुद्धि का भी उपयोग नहीं करते। पहलवान राममूर्ति चलती मोटर को रोकने की शक्ति रखता था। उस मोटर की ताकत ३० हार्स'पावर की होती थी। वह अपनी छाती पर हाथी भी खड़ा रखता था । फिर भी जब वह चलता था तब क्या जमीन में गड्ढे पडते जाते थे ? आदमी चलता शरीर के वजन पर है, परन्तु जब बल का प्रयोग करता है न्तब अपनी आत्मा की शक्ति के अनुसार कार्य कर सकता है। दियासलाई का पूरा बक्स रई के ढेर में रह सकता है, लेकिन अगर एक ही दियासलाई घिसकर, जलाकर, रखो तो हजारों मन रुई को जलाकर खाक कर देती है-शक्ति का सच्चा अनुमान उसके प्रयोग को देखकर होता है। स्नात्राभिषेक की पूर्णाहुति बारहवे स्वर्ग के इन्द्र का अभिषेक पूरा होने के बाद शेष सब इन्द्र अभिषेक करते है। अन्त में ईशानेन्द्र भगवान् को गोदी मे बिठाता है और सौधर्मेन्द्र बड़ी धूमधाम से अभिषेक करता है। इस महोत्सव में देवगण इतनी आनन्द-मस्ती में आ जाते हैं कि, उन्हें स्वर्गों के आमोदप्रमोद तुच्छ प्रतीत होने लगते हैं।
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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