SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 238
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तेरहवाँ व्याख्यान आत्मा की शक्ति [१] महानुभावो । अव्यात्म के कोश-रूप श्री उत्तराव्ययन सत्र का स्मरण आते ही, उसका छत्तीसवाँ अत्ययन सामने आ जाता है और अल्प-ससारी आत्मा का वर्णन दृष्टि के सामने घूमने लगता है । आत्मा का स्वरूप आपके दिल में उतरे इस हेतु मे हमने उसे विस्तार से समझाया। अब जो कुछ चनाना शेप रहा है, उसे भी समझा देना चाहते है । आत्मा की शक्ति का यत्किचित विवेचन पहले हो चुका है । आज उसका विशेष अध्ययन करें । आत्मा की पूर्ण शक्ति का अनुमान तीर्थकरों के जीवन मे लगाया जा सकता है, कारण कि उनमें आत्मा की शक्ति अपनी पराकाष्ठा पर पहुँची होती है। तीर्थंकर किस भूमि में होते हैं ? जम्बू द्वीप, धातकी वड और अर्धपुष्करावत खड-ये 'हाई द्वीप' कहलाते है, उनका माप पैतालीस लाख योजन है । आज के भूगोलबाले दुनिया की परिधि बाईस हजार मील बताते है। पर, यह भूगोल पूरा * जर्मनी के सुप्रसिद्ध नचिकनी कौर ने 'सुपरमैन -- श्रनि मानवकोपना की, तीर्थकर उससे भी अधिक शक्ति, ऐश्वर्य आर मौन्दर्य सम्पन्न की है। इस मनार में तीर्थंकर से बढ़कर कोई नहीं होता ।
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy